स्वर शून्य मनोहर की झांकी कभी दर्शन हुई... तृषित

स्वर शून्य मनोहर की झांकी कभी दर्शन हुई  ...

हृदय नहीं उनके भीतर है । हृदय नामक वस्तु नहीं जानते वें। प्रिया है ... प्रिया । हृदय तो प्राकृत वाचक । वहाँ उनके भीतर श्रीप्रिया ...प्राणवत । जब वह उस हृदय सुख की सेवा में होवै तो बड़े उल्लसित दिखे है । सारा ब्रज बाँवरा बनाए देवे । जब वे उस हृदय ...प्रिया का आंतरिक परस अनुभव कर अधीर होवै तब वह शब्द-शून्य । क्योंकि प्राण ही वह प्रिया रूपी हिय उनका अब श्रीप्रिया सम्पूर्ण रूप जिस रूप में हृदय होवे वह व्याकुल उस हृदय की झाँकी को ...उसी पिपासा से खिलता खेल वह हृदय दर्शित होता उन्हें ...निजप्राणों का दर्शन किया है कबहूं । वहीं प्राण श्रीप्रिया । हृदय की पुष्टि से नयनों के सुख तक वहीं सँजीवनि...  निधि । निधियन की निधि ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय