मृत्युदान , तृषित
सुनो , तुम मुस्कुराते रहना । ...तुमने जो दिया न वो बहुत कीमती था । ...सोचा भी न था , सच । अब...
जीवन तो सजा ही दिया तुमने । तनिक समय मेरे हिय को गंगा तक ले चलो । वहाँ तक न छोड़ोगे ना । ...ना यमुना , नहीं गंगा तक ...यह यमुना तो तुम्हारे प्रेमियों के लिये न । मुझे तो गंगा में ही छोड़ना वही मेरा अधिकार । इतना तो दोगे न । जानते मेरी गंगा क्या है तुम्हारी रस झारी जब मेरे हृदय पर टपक टपक बाहर उछल-उछल कोई शब्द करती ... ... ! ... अच्छा क्षमा प्यारे । नहीं दुःखाना हृदय तुम्हारा जो तुम चाहो । तुम मुझे कहीं नाले में भी छोड़ दो तो क्या वह मेरे लिये गंगा न होगी ।जहां...तुम छोड़ो वहीँ ...मृत्यु ।
पर एक बात कहुँ , यहाँ भी तुम जीत गए । छोड़ना भी नहीं न तुम्हें ।
तुम तो सब जानते न ... ... तुम्हीं कहो , क्या वहाँ मेरा जीवन होगा । ...ना ...ना न , तो इस बार न छलना । जहाँ जीवन न हो , वहाँ न ही हो । मान लेना मैंने हार मान ली ! तुम से दूरी... जीवन-प्राणों से दूरी । ... ...यह जो तुमने सँग दिया न अपने प्यारों का यह भी छल । वरना तुम्हारे से छूटने के भय ही बहुत था न ... प्राणों के हरण के लिये । यह प्रेमी भय ले लेते मेरा ...कहते कुछ न होगा । ...पर सच कहूं ! अब नहीं शक्ति । तुम अपना प्रेम । अपने प्राण ले लो । बस एक विनय ...मृत्यु समझते न तुम । कहीं किसी भाव हानि को तो मृत्यु नहीं कहते तुम । बताओ समझते हो या नहीं , कहीं तुम चले जाओ और वह अशेष विष सम जीवन को कहो यह ही मृत्यु ...देखो मैंने कभी कहा भी हो न तो मौहे ये अनुभव न दीजो । ...मृत्यु को वरदान दीजो । और मृत्यु क्या होवे यह तुम न चिंतन कीजो धरा के जीव जो मृत्यु पुकारे वहीं । दोगे न ...! तुम तो जीवन । तुम नहीं तो जीवन नहीं । अब तुम दोनों ले रहे और कहो यह भी अनुभव करो तो सच कहूँ मैं माटी की गुड़िया हूँ, कोई तुम्हारी दिव्य वस्तु नहीं । इतना न सामर्थ , और यह कोई माने न माने मैंने तो जान लगा दी थी तुम्हारा न होने को । सच मे तुम खड़े हो गए और मैंने आंखे न खोली क्योंकि मुझे पता था ... ... खेल होगा यह बस ...। ...चलो खेल ही , पूरा खेलोगें न । तुम न हारोगें , सच मे तुमने जो दिया वह तो स्वप्न शायद मुझे सदियों में न आया हो । देखो जब आएं जबरन प्रेमदान कर गए , काठ की पुतली में । अब जाते हुए जीवन ले जाना , प्रेम न छुटे । ऐसा न हो तुम कोई नया राग छेड़ दो । कोई वैकल्पिक सुख न होना । कोई स्वप्न न होना । कोई और रूप भी न होना । बस सप्राण चलें जाना । मिलेंगे ...मिलते रहेंगे । अब यह अध्याय बोझ हो गया बस । अब तो मैं ही न छोडूं तुम्हें बस यह पारी हारनी थी । फिर सब जीत ही जीत... समझ रहे न । ...मृत्यु , पूछ लेना , धरा पर किसे कहते । दोहरा खेल जितना साहस नहीं अब ... ...तुम भी थक गये होंगे और मेरा लोभ तो... ... पर एक बात कहुँ , न आया करो यूँ । आ जाओ किसी के जीवन मे इतना तो कसम तुम्हें तृषित उसे स्वप्न में भी छोड़ा तो । ...क्या हो तुम । क्या कर देते न... लिखूँ नाम । लिख दूँ कहीं कोई और से लिखवा दो ...फिर कहो ...सॉरी । किस नाम से जानते वही तृषित । जानते न यह नाम । यही तो ... जाओ नहीं कहना अब , ज्यादा कह्वे से प्यार आवे फिर तुम खेल जाओ खेल ।
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