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Showing posts from July, 2018

नीरस हिय , तृषित

*नीरस हिय* दिवारात्रि भगवत्कृपा की सुधा बरस रही है , परन्तु जीव आक के पौधे की तरह इस दिवारात्रि बहती धाराओं में सूखता जा रहा है । विचित्र स्थिति है अविद्या की , विचित्र स्थिति ...

श्रीवृन्दावन - तृषित

श्रीवृन्दावन संयुक्त रूप से श्रीप्रियाप्रियतम जिस दृश्य को निहारना चाहते है , वह दृश्य श्री वृन्दावन है । श्रीप्रियाप्रियतम के अपार रसप्रेम को जो धरा धारण करती है वह धा...

विश्राम - तृषित

*विश्राम* श्रीकिशोरी जू सम्पूर्ण प्रेम-रस सौंदर्य का विश्राम है ... विश्राम , जीव विश्राम को जल्दी अनुभव नहीं करना चाहता । पथिक पथ पर चलते हुए रोने में सुखी है । वहीं उस पथ पर वह ...

तृषित पद खण्ड

नवनीत-प्रीत-रीत भरी लागे है , ज्यों मूरत नवनीत खरी । रसवर्षिणी अनुराग झरी , स्वाद ज्यों छलके अधर सो ढ़री । फूल ऐसो जे छुवत पिघले , रस ऐसो जे न छुवत मधु टपके । रहत ज्यों पिय नयनकोर म...

बंकिम छटा -- तृषित

*बंकिम छटा* दृश्य जगत में जीव चहूँ ओर स्वयं का विलास देखना चाहता है , यहीं मूल कामना लघु-दीर्घ होकर जीव को इस प्रपञ्च से बांध देती है । जीवन की बहुत सी वृतियों में हम अनुभव करते ...

विरहित कौन -तृषित

*विरहित कौन ???* नित्य रस श्रृंगार के पथ पर हमारे श्रीप्रियाप्रियतम नित्य एक प्राण , एक वपु , एक मन , एक सौंदय , एक श्रृंगार , एक भाव है । नित्य विहारमय ...प्रगाढ़ परस्पर मिलन की इस अविरा...