सेवा वल्लरी , तृषित

निकुँज की सेवा वल्लरियाँ भाव सेवा वल्लरियाँ है ।
सहज में सहज सेवाएँ अति सहज है वह वें नही है जो प्राकृत जीव जानता है , वह वें है जो प्रेमी माँगता है । प्रेम जहाँ है परिपूरित है , माँगता नहीं है । पंछी बस उड़ जाते है , जहाँ जाते है कुछ चुगते है और फिर उड़ जाते है यह दाना पानी देकर कोई समझें वह सेवक है तो यह भृम है । इस दाना पानी के सेवक तो वह है जो उड़कर इसे पान करते है । सेवा होना  अति निकट आस्वादन है परन्तु वर्तमान में इसकी व्यापक अरुचि है , जिससे यह अप्रकट हो चली स्थिति है जो कि सघन-अपनत्व से ही खुलती है । सहज सेवा सहज प्रीति से प्रकट होती निज प्रेम का , निज हृदय का , निज प्राण का श्रृंगार लास्य है । जिसमें अनन्त भाव श्रृंगार वल्लरियाँ सहज ही कुछ चाह होकर वर्षित होती हुई भीतर से चाह लेती हो । सहज सेवा अति सहज है विलासित उत्सवित झूम में , पौढाई देने में भी नृत्यगीत भंग नही होते ऐसी रागात्मक प्रीति भीगी सेवाएँ है । सेविका ही उत्स-उत्सव है ऐसी मीठी सेवाएं है , सो इह लोक की तार्किक सेवाएँ न है । इह लोक में भी सहज सेवा परिमंडल में फैली है पर वह सेवा है यह उन्हें अभी खबर नही है क्योंकि वह तो किसी उत्सव में है । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

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