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Showing posts from April, 2020

हियोत्सव , तृषित

*हियोत्सव* हिय का सँग छूट नहीं सकता प्राण का सँग सम्भवतः छुटे भी तो क्योंकि हिय वह जीवनराग है जो प्राणाहुत होकर ही प्रस्फुटित होगा हिय और हिय जो देगा वह रस भी नहीं छूट सकता । औ...

सखी मोरे प्राण मराल, तृषित

1 सखी मोरे प्राण मराल , चुनि चुनि झूमै रसिली शरद रसाल सखी मोरे प्राण युगल , झूमत फुलत उमगावे रँग गुलाल सखी मोरी प्राण निधि , रीति गुढ़ रस रति बसन्त सु पुलाल सखी मोरी तृषित प्यारी , ...

विस्मृति दान , तृषित

*विस्मृति दान* प्रेम के विचित्र खेल है , प्रेम प्रेमास्पद को सुख देना है । प्रेम रस जीवन-विलास देना है ... ! प्रेमी के जितने भी निज संकल्पित सुख है उनकी सिद्धियाँ प्रेम नहीं है । प...

शुभा तृषित । तृषित

तुम शुभा हो तो , मैं तृषित । अब संकेत किया है कि यह खग यहाँ नहीं है , समझ नहीं सकता कोई । केवल काक के निकट थोड़ी सहजता है मेरी । भीतर काक तृषित है वह वेणु की विवशता में रो नहीं पाता के...

तृषित स्थितियां तब और अब , तृषित

हमारी वाणीसेवा जब प्रकट ना थी तब वह नित्य बात करते रहते थे ,फिर वह तंग करने लगे कि कहो न । कहीं रसिक समाज या कीर्तन आदि में दास की उपस्थिति होती तो वही रसिक हिय से निवेदन कर पड़ते...

प्रीति प्रियतम , तृषित

प्रीति-प्रियतम उन्हें ऐसे सौन्दर्य लावण्य माधुर्य की पिपासा है ...जिसकी स्मृति से ही उनके ही दिव्य देह चराचर जगत प्रेमासक्त हो उनके प्रति आकर्षित होते है । जो खेंचता है ...वह ...