ऋतु रुचि , तृषित

निकुँज में सब ऋतु , सब रस , सब सुख सँग होते है ।
यहाँ उनका प्रकट ऋतु की सेवा चिंतन सँग एक एक का अभ्यास या भजन किया जाता है ।
वहाँ निकुँज में सब रस-सेवा- सुख सँग होते है ।
हम दोनों तरह से चर्चा करते है ।सब रसों की सामूहिक उत्सव सँग या यहाँ की ऋतु में वह रस विशेष प्रकट हो पाता तो उसकी बात जैसे वर्षा होने पर हिंडोले की बात । उस समय अगर रँग होली की बात करें तो वह भी हो सकती क्योंकि सब रस सँग होते है , पर भावुक जन  जो तब ऋतु होती उसके असर से तब प्रकट रस को निकट से अनुभव बना सकते है । नित्य रस सिद्ध होने पर सभी रस , सभी सेवाओं का कभी भी अनुभव होने लगता है । फिर भी तत्काल जो ऋतु होती उसकी बात ऐसे नित्य रसिक के हृदय में स्वतः झूम रही होती है । सो हमारी बात उनको सुख देती जिनकी लीला प्रकट है या होगी या जिन्हें लालसा है ।
ऋतु बाहर जो है । भीतर निकुँज में रूचि है युगल की । बाहर ऋतु को प्रधान कर एक एक सेवा को पकाया जाता ।। भीतर सब रुचिवत सँग होती ।

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