रसिक हृदय , तृषित

रसिक सन्त का सहज हृदय ही कुँज रूप है । वहाँ हमें प्रवेश मिले । परन्तु सहज भावना और बिना किसी चतुराई और दुराग्रह से ।
भजन से यह सम्भव है ... भजन के प्रति आसक्ति और आसक्ति का व्यसन होने से स्वतः सहज स्पंदन से रसिक हृदय में अणु मात्र भी प्रवेश मिला तो पथ में कहीं कोई बाधा ना रहनी है ।
रसिक हृदय को मिली किसी पीड़ा में अगर उनका हृदय हमारा त्याग कर दे तब पथ का कोई विकल्प हमारा हितैषी ना रहेगा ।
रसिक हृदय को कोमलता से भावरूप स्पर्श हो , भाव मात्र ... तृषित  । श्रीहरिदास ।।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय