जगत , धर्म , माया और तृषित

[9/20, 11:35] सत्यजीत तृषित: मकड़ी जो आस पास बुनती है , उसमें उसके अतिरिक्त और कीड़े ही फँसते है ।
मनुष्य सभी जाल अपने ही फँसने को बुनता है ... तृषित

[9/20, 11:51] सत्यजीत तृषित: अगर सच में आप ईश्वर की प्रिय वस्तु है तो जगत में आपके सम्बन्ध कम होते जायेंगे ।
जगत का विस्तार , उनकी गोद से उतर जाना है -- तृषित

[9/21, 14:54] सत्यजीत तृषित: अगर हमें किसी विधर्मी के वचनों से धार्मिक आघात हो तब यह सिद्ध होता है कि हमने अपने ही धर्म को यथेष्ठ धारण न किया । धारण सही से हो तो पीड़ा हो ही नही ।
विधर्मी की बात सत्य प्रतीत होने पर ही पीड़ा होती है , और अपने भाव सम्बद्ध सत्य बोध के अभाव में ऐसा होता है ।
अपने शरण्य पर सम्पूर्ण आश्रित होता परम् आवश्यक है । उसके उपरांत बाह्य व्यथाओं से हानि नहीं होती । हाँ , तब व्याकुलता के विकासार्थ लीला हो सकती है ...
तृषित

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