कोई और दुनिया है यह , तृषित
कोई और दुनियां है यह
बड़ी पैनी हवाएं यहाँ चलने लगी है
इस बार उधेडने के लिये बुने गए थे हम
कल जो बुन रही थी सलाई बड़ी कशिदियत से
हाय !! कितने तलब से आज वो उधेड़ रही है
चलो कोई न
ज़माना रूठता तो हल्की ही चोट होती
दिल के रहबर ने फ़ुर्सत की गुजारिश की है
जिस नाम पर दुनियां सिमट गई थी
उसकी छाया कही खो चली है ...
--- तृषित
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