मैं सत्य हूँ , तृषित

हम सब सोचते है ... मैं सत्य हूँ !!
यह स्थिति मूर्खता है हमारी ।
मैं , सत्य , हूँ , तीनो ही ईश्वर के बोधक है ।

जीवन  या कोई बात सत्य है यह हमें पता होता है
कि क्या वह सत्य में सत्य है ।
शरणागत का सत्य ईश्वर को छू कर आता है ।
शरणागत सत्य प्रभु की ही बात कहता है ।
सत्य में , मैं सत्य हूँ कहने का विषय नहीं ।
अनुभव का विषय है ... क्या वह संवाद सत्य का है ... ??

हम सत्य नहीं है , सत्य के आश्रित है । आश्रय रहेगा तो सत्य हूँ इस सिद्धि की आवश्यकता नहीं ।
सत्य अनुभव से प्रकट होता है , अन्य किसी विधि से नहीं । अनुभव आश्रय से प्राप्त होता है ।
हम सब माँ की गोद से उतर चुके है , और जो भी बड़ा हो चुका है वह सत्य से दूर ही जा रहा है । वह गोद सत्य है ... आश्रय । अनुभूत कीजिये ईश्वर की गोद को , पृथक से मैं सत्य हूँ यह प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होगी । --- तृषित

आश्रय सत्य है
और आश्रित का जीवन सच्चिदानंद का विलास है

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