साँझ , तृषित काव्य
साँझ
कोमल प्रभात
तरोताज़ा सी
बात तो जब बनती
जब साँझ प्रभात सी
सुलझी होती ...
कुछ अलसाई सी
कुछ शरमाई सी
प्रभात तो भेंट है
परन्तु साँझ ...
उस भेंट की एक और बलि
प्रभात तो मुझे सजाकर लाती है
जीवन श्रृंगार से
साँझ तो थकी होती है
सुखी हुई सी मेहँदी सी ...
आओ सखियों
साँझ सजाएं
--- तृषित
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