कथा भाव
[3/1, 13:00] सत्यजीत तृषित: केवल राधा ही पूर्ण कृष्ण को अनुभूत् और दर्शन कर सकती है ।
और कृष्ण ही पूर्ण राधा को अनुभूत् कर सकते है ,
कह नहीँ सकते , अनुभूत् कर सकते है , और परस्पर वह जितना एक दूजे को कह सकते है , उतना कोई नहीँ । जिस स्वरूप शक्ति के आश्रय से गोवर्धन उठाया गया उतना उस शक्ति को अपने भीतर अन्य कोई ह्लाद नहीँ कर सका , न कर सकेगा ।
[3/1, 13:28] सत्यजीत तृषित: श्री जी के भाव सदा अद्भुत ही है , क्षण भर का कृष्ण भाव नहीँ हटता , अपितु सखियों को क्रिया सम्पादन हेतु कोई कृष्ण लालसा जगा कर ही क्रिया करवानी होती है , वरन् वह तो चेतन है या नहीँ यह भी नहीँ जानती , श्री राधा जी स्व विवेक रखती नहीँ , सखियाँ , विशेष ललिता जी सदा सजग रहती है , प्रति भविष्य के श्री जी स्पंदन को समझ जगत कार्य उन्ही के द्वारा हो सकते है , एक गजब की बात श्री जी कब से वृन्दावन में है , पर मार्ग भी भूल जाती है , कोई संग ना हो तो कहा की कहा , एक दिशा से आने वाली वेणु कभी पथ बनाती है , कभी पथ ना हो तो भी वह चलती जाती है , कभी वेणु एक दिशा से ना आकर परिधि बना सब और से आती है तब उनकी स्थिति और भी , हाय ।।।
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