हमसब स्व दुःख से ही नहीँ उबर सकते , पर दुःख का चिंतन अलग विषय है ।
स्व सुख ही प्राप्त नहीँ तो पर और परम् सुख का रस अनुभव ही कैसे हमें हो ।
पर एक लड़की , बात नहीँ करनी चाहिए , फिर भी ,
दुःख क्या है ? इसके लिए उसके बीते जीवन को कोई सोच भर लें , और वर्तमान में युगल रस , भजन का प्रभाव कैसा है , गुरु कृपा कैसी है यह भी उनके ही दर्शन से पता हो ।
जिन्हें पूर्व जीवन की जानकारी हो , वह नविन जीवन को देख या अनुभूत् कर स्वतः भगवत् लालसा को पा सकते है ।
भगवत् भजन से प्राप्त ओज से वह कुछ विचित्र रस चाहती है , दृश्य सामर्थ्य नहीँ , पर अदृश्य है ।
कारण कोई सोचे तो प्रेम तो अकारण होता है , यहाँ सब होता है , प्रियतम के सुख हेतु ।
जय जय श्यामाश्याम ।।।

नन्हीं लाडिली श्री जी की ।  हे तो बड़ी ही , पर उनकी श्री जी की एक सखी , जिनका वर्तमान अब युगल प्रसाद है । वह निश्चय कर चुकी है । कथा के लिए , साधन नहीँ । ना जुटे तो लोन भी लेने तक ।
मुझे भी यही पता था अभी रोक दिया गया । यह रुक गई तो मैंने तो गहरी साँस ली , दो दिन भीतर बाहर उत्सव भी मनाया , कि चिंता हटी , पुनः चिंतन हो सकेगा ।
फिर कल पुनः लेख वें दिए , सवेरे लगा , यह पीड़ा मेरे संग से बढ़ी । क्योंकि मुझे तो काँटो बिन गुलाब सदा से पसन्द नहीँ । बाग़ में पुष्प और सूखे गिरेे पत्ते सदा संग हो तो ही प्राकृतिक सौंदर्य निखरता है । किसी को अगर गम चाहिये , मेरा संग कर लीजिये , निश्चित मिलेगा । यह और बात है अपार दुःख का परिणाम सुख नहीँ , नित्य आनन्द है , यह सौभाग्य है एक , कृपा। वरन् सुख लालसा मुक्त हो , दुःख स्वीकार कर आनन्द का वरन् कर करुणा के चरणो में सर्वस्व समर्पण ही "तृषित" है ।
एक अदद मेरे संग जुड़ने से समस्या और रस भरी हो गई है , क्योंकि मेरे लिए सदा ही किसी भी कार्य में गहन कठिनता , व्यर्थ श्रम , और अति सुखद परिणाम , और कृपा की स्पष्ट परिणीति हुई है ।
यहाँ कोई भगवत् प्रेमी होते संग तो पथ सहज होता , मेरे संग होने से पथ और जटिल हो गया है , जो यहाँ तो आवश्यक और नित्य ही है , पर संग के साथियों को पीड़ा अनुभव ना हो ।
इस उद्देश्य की सहज पूर्ति होती , अगर संग मैं न होता , मेरे संग पथ सदा ऐसा ही रहा है । सरल नहीँ रहता, मजा आता । बड़ी बड़ी रुकावटें न हो तो क्या कहा जाएं।  फिर वह भी एक जीवन युद्ध जीत ही युगल सरकार जी तक पहुँची।
मुझे एक चीज़ ना पसन्द है , माँगना । भगवान ही हो , मेरा हक ही लिए खड़े हो, प्रसाद स्वीकार है , अमनिया नहीँ । यहाँ जो भी इनके मनोरथ हेतु संग होगा उनका सौभाग्य होगा ।वरन् वह तो अपने सेवा कार्य को निभा ही लेगी । निश्चित ही , मुझे मूक दर्शक रहना था । फिर लगा अवसर छुट रहा है , सभी से । कभी मिलियेगा इनसे । युगल कृपा का सजीव दर्शन है वह ।
धन के धनी बहुत है, यहाँ भगवान ने मन के धनी को कमान दे दी ।
  अतः अगर किया जा सके तो सहयोग कीजियेगा । परन्तु सेवा भावना से । वरन् युगल संग है , उन्हें कहना नहीँ , बस उनकी आभा दर्शन से मिली प्रेरणा शक्ति से ही सर्व काज हुए है होंगे भी ।

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