अन्य स्वरूप की उपेक्षा न हो
युगल चरण रति होना , दिव्य स्थिति है , परन्तु कभी अन्य भगवत् स्वरूप की उपेक्षा ज्ञात अज्ञात भी ना हो ।
पूर्व में यह कह कर की कृष्ण से भिन्न कुछ नहीँ फिर यह मानना की किसी दर्शन में वह नहीँ । यह किञ्चित् ना समझी है । प्रति स्थिति में वह ही है , अथवा जिनके जो इष्ट है , वहीँ उन्हें सदा आभासित होते है , और उन्ही का बोध होता है ।
मान लीजिये मैं बस में हूँ हमारा एक्सिडेंट होते हुएे हम बचे और यहाँ सब अपने अपने इष्ट की ही कृपा का दर्शन करें , पर मैं जिद जाऊँ की यह तो मेरे प्रभु ने किया , और मेरे संग से आप सब भी स्वतः बच गए । तो यह मेरी मूर्खता होगी ।
हाँ ऐसा सम्भव है , परन्तु जिन्हें किसी भी स्वरूप में पूर्व में ही भगवत् संग अनुभुत है , उन्हें अपने भगवान की महिमा से आकर्षित क्यों करना । सभी शक्तियो को साधन , भोग , सेवा आदि की आवश्यकता है ही ।
और मनहर प्रेमी अन्य शक्तियों से उन्हीं की चर्चा करने ही चला जाएं , अगर जगत में नाना विधि धर्म , स्वरूप मानने वालो से श्याम जु चर्चा की जा सकती है तो उन्हीं की प्रभूत शक्ति से क्यों नहीँ ?
शिव जी से मिलिए , कहिये अपने युगल की करूण लीलायें ।
राम जी से मिलिए कहिये आप भी न मेरे लिए कान्हा ही हो गए ।
गणेश जी को उनके कौतुक सूना सूना कर हँसा दीजिये ।
उनके प्रेम में उनकी ही बात सब से हो । ना कि अपने माता पिता को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने में अन्य सभी का खण्डन , सभी को अपने ही माता पिता प्रिय है । अन्य का भी आदर हो ऐसे संस्कार हमारे श्यामाश्याम देते ही है ।
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