सत्य का दर्शन सहज तृषित
पक्ष-विपक्ष , राग-द्वेष , रहित होने पर निष्पक्ष और निष्काम दृष्टि से सत्य स्पष्ट दिखाई देता है । सत्य का यह दर्शन आगे भगवत् रस में परिणत हो जाता है - सत्य परम् धीमहि , सत्य का अनुसंधान नहीँ त्यागना चाहिए । सत्य का दर्शन और ध्यान नित् पल अनुभूत् रहे । - तृषित ।।।
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