प्रियप्रियतम की बात , 19 - 04- 2016

श्री जु नित् उन्ही का स्पर्श चाहती और जानती है फिर भी जब भी वह छूते है , वह अति नव प्रथम ही स्पर्श सा पूर्ण रोमांच देता है उन्हें
वरन् उन्हें देख पाना भी सहज नहीँ
वह खड़ी हो तब भी नहीँ देखा जाता
उन्हें प्रेम करना यह उन्ही की उदारता है
वह खड़ी हो आँखों में बाढ़ आ जाती है
उनकी सुगन्ध से ही रोमांचित मूर्छा होने लगती है
वह बोल भी लेती है तो चित् क्या बोला यह और कितना सरस बोला सुरीला बोला दोनों पर एक समय प्रतिक्रिया नहीँ कर पाता । स्मृति तो उनकी सरसता का ही संग कर लेती है , पर वहाँ सरसता को पा कर भी उनके कथन को करने हेतु ततपरता चाहिये जो बड़ी ही जटिल स्थिति है । रस और आनन्द साक्षात् हो । प्रेम की नदी बहे तब भी विस्मृति को बलात् हटा केवल सेवा । यह सहज नहीँ ।
वह साधारण नायक नायिका नहीँ न । दिव्यातीत सुंदर सरल सरस मधुर प्रियप्रियतम है न ।
वह जड़ता भी सेवा हेतु हटा ली जाती है । जड़ होना वहाँ रसमय होना ही है । ठहर कर उन्हेँ निहारना
वह जब आवेशमय मिलन में सखियों सन्मुख होने लगे तब सखियों के तो भाग खुल जाते है , और यह जब चेतते है तो शर्मा से जाते है ।
यह सब काल्पनिक नहीँ , सत्य है ।
इनका स्पर्श की लालसा कीजिये
अपने पूर्व के मिलन की उन्हें स्मृति नहीँ रहती , विशेष प्रिया जी को नहीँ रहती , वह सदा प्रथम मिलन स्पर्श और दर्शन ही विचारती है ।
कभी कोई पूर्व मिलन मान अवस्था में अथवा विरहित होने पर छा भी जाता है तब वह उन पलों में पहुँच भी जाती है
प्रिया जी इतनी सरल है जितना संसार में दृश्य जगत् में कुछ भी नहीँ
वह उस असीम की प्रिया है जिनका पूर्ण दर्शन भी उनके अतिरिक्त किसी को प्राप्त नहीँ  । फिर भी सहज और सरल । श्री कृष्ण से अधिक मधुर प्राप्य क्या होगा वह ही उनके है फिर भी वह अति महाभावमय सरलतम है । इतनी सरलता ही श्री कृष्ण की प्रेममय प्राप्ति का हेतु है । वास्तविक सरलता सहज होती है , अभ्यास रहित ।
किशोरी जु को जो रस प्राप्त है वह अन्य किसी को भी होवें तब वह अहंकार में पागल हो जावें । पर उन्हें तो और की लालसा होती है , और सुख देने की वांछा।  लेना नहीँ । जगत् की सम्पूर्ण सुंदरता कोटि कामदेव की कला श्री कृष्ण को सुख नहीँ दे सकती । ओर श्री  जी के दर्शन और स्मरण मात्र से वह रोमांचित हो उठते है । सम्पूर्ण जगत् में मिल कर भी नहीँ कोई नहीँ उनसा सरलतम । प्रियतम उनकी सुंदरता माधुर्य सरसता सरलता दिव्यसौरभ किस बात से मोहित हो रहे है यह वह भूल जाते है  । यह हमारे वार्ता ग्रुप में किन्हीं से हुई बात के अंश से - सत्यजीत तृषित ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय