भगवान से बड़ा कौन ????
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कभी उनसे (जै जै)मिलना हो , तो संग किसी को लें जाइयेगा । और मिल कर पूछियेगा , आप बड़े या मैं ?
उनका उत्तर होगा - तुम । यानि आप । किसी अन्य को लें जाने से यह उस अन्य के लिये प्रमाण होगा , कहीँ आप झूठ तो नहीँ कह रहे ।
जै जै से भी बड़े की चिंता होती है आज कल , कि यह बड़े , वह बड़े ।
यहाँ बड़ा शब्द जै जै की ओर से नहीँ होता , वह तो सर्व रूप सरल है । अति सरल । कोई भी कहे बड़ा कौन वह कहेगें तुम । यहीँ इस बात का उत्तर है कि बड़ा कौन ?
अगर कही लिखित या सुन कर भी आपको किन्हीं अन्य के भगवत् स्वरूप से अधिक श्रेष्टता का पता चले और भावना फिर उस नई जानकारी अनुरूप उस कहे बड़े तत्व की हो जावें तब यह मानना चाहिये कि जै जै से सम्बन्ध नहीँ हुआ ।
गुरू तत्व बड़ा है , भगवत् तत्व से भी , क्योंकि वह भगवत् तत्व का मर्म सामने प्रगट करते है । परन्तु सद् गुरू से सम्पर्क कैसे हुआ ?
यह विधान किनका था , उन्होंने उद्धार का निश्चय किया तब ही न , और फिर आगे किन्हीं स्थितियोँ में स्वयं को गौण कर अपने प्रिय प्रेम स्वरूप को ही स्वयं से अधिक प्रकट करते है ।
भगवान से बड़ा होना , बड़ा होना नहीँ होता ।
भक्त महिमा अधिक होने पर भी भक्त स्वयं को क्यों कहेगा वह श्रेष्ट है और वह नहीँ कहेगा तो हम क्यों कहे ।
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