तीन मूर्खता कंचन कामिनी प्रतिष्ठा , सत्यजीत

हमारे पास तीन मूर्खता है , कंचन , कामिनी , प्रतिष्ठा ।
कंचन का सम्बन्ध लोभ से है भगवत् लालसा में यह नहीँ रहता । भगवत् रज से रजो गुण की निवृत्ति होती है , भगवान की रज , धाम की रज स्वर्ण से प्रिय लगें तब यह दोष नहीँ रहता ।
कामिनी का सम्बन्ध सौंदर्य से है , सच्चे सौंदर्य के बोध के बाद यह भी नहीँ रहता । उनके सौंदर्य बोध से स्वयं में ही उनके प्रति कामिनी रूप होने पृथक् किसी सौंदर्य का आभास नहीँ रहता । एक सच्चा माली (बागवान) अपने बगिया के सुंदर पुष्प को भगवान का ही जानता और मानता है ।
प्रतिष्ठा के मूल में दम्भ और अहंकार है , वास्तविक स्वरूप बोध कि मेरा कुछ नहीँ , सब उनका , सर्व रूप वहीँ है तब यह भी नहीँ रहती होने पर भी उनके लिये होने की प्रतिती होती है । भगवत् सम्बन्ध में प्रतिष्ठा को भगवान से पृथक् अपना जानना उनसे प्रियता ना होना कहता है । अपने लिये होती प्रसिद्धि में उनकी ही प्रसिद्धि सिद्ध होनी चाहिये क्योंकि किया धरा सब उनका ही है अतः उनके किये धरे को वें ही सम्भालें । कभी-कभी भगवान का आगमन सम्पूर्ण रूप से हो तब माधुर्य और ऐश्वर्य दोनों जीवन में आता है पर वह उनका ही है हमारा नहीँ यह ज्ञात रहे ।
सत्यजीत तृषित ।

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