भगवान से मिलन न होने का कारण इच्छा न होना सत्यजीत तृषित

भगवान से मिलन न होने में भी इच्छा न होना ही कारण है ।
24 घण्टे जप आदि साधन कर भी
भीतर मिलन की अनिवार्य आवश्यकता नहीँ होने से परिणाम में
इच्छा अनुरूप होना ही है । भजन व्यर्थ तो जाता नहीँ , भजन तो सर्वमेव सम्भव है , परन्तु भजन का ह्रास भी हम ही करते है । सिद्ध होकर , भौतिकता चाह कर ।
सद्गुरू द्वारा प्राप्त मन्त्र दीक्षा में किसी भी तरह की चाह न हो ।
इस स्थिति में वह भजन गुरू सेवा भाव से ही हो और उसमेँ स्व चाह न हो ।
भजन से सब सम्भव होने पर भी कुछ न चाहा जावें ।  भजन (साधना) से जीवन में भिन्नता न हो । भजन और जीवन एक ही हो जावें ।
दूसरी बात 24 घण्टे जप करना , कोई पाठ करना , कोई अनुष्ठान करना भजन नहीँ कहा यहाँ , 24 घण्टे केवल भगवान के लिये होना , भगवान का होना । उन्हीं के निमित जीवन का होना भजन है ।
वें संग रहे यहीँ भजन है । जीवन रहते - रहते कामना छुट गई उनसे प्रियता हो गई तब जीवन बाद भी यही ही होना है । रसमय रहिये यह मैं कहता रहता हूँ सभी से । रस वें स्वयं है , उनसे लिपटे रहने का अहसास ही रसमयता देता है और यह प्रार्थना रहती है उस समय कृपा हो तब वें रसमय कर सकेंगे , कोई जबरन उन्हें छु तो नहीँ सकता अतः यहाँ उन्हें निवेदन होता है तब कि वहाँ छु दीजिये न । एक बार रसमयता हो जावें , उनका आलिंगन हो जावें तो जीवन फिर भौतिक ममता की और नहीँ हो पाता। 
सदैव दो चीज़ आवश्यक है , हमारी और उनकी ईच्छा । उनकी ईच्छा का फलित नाम "कृपा" है ।
मूल में यह दो नहीँ एक ही है , उनकी ईच्छा हो जावें तब जीव की क्यों न हो ? अतः जीवन में जब भी अचानक भगवत् रस आवें तो सजग रहिये वह उनकी ईच्छा की सुचना है , फिर अपनी लालसा में कोई कमी न रहें । सत्यजीत तृषित ।

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