ईच्छा गहरा विषय है , सत्यजीत

इच्छा गहरा विषय है , अब इस इच्छा शक्ति पर बात नहीँ होती ,
इच्छा ही वर्तमान का कारण है ,
और वर्तमान इच्छा भविष्य की होगी ।
हमारी इच्छा हमें कर्म बन्धन में बांधती है , भगवत् ईच्छा ही "कृपा" है ! अपनी ईच्छा के उपविराम बिन भगवत् इच्छा के दर्शन नहीँ होते ।
संसार दुःखी है , सब का चित् अप्रसन्न है , कारण ?
हम सभी की के धारणा हो चुकी है ,
कि हमारे पतन की वजह भगवत् विधान है , दुःख का कारण विधान है । और कभी उत्थान या रसमय जीवन हुआ वह हमारी ईच्छा से होगा ।
हमें याद न हो पर आने वाली हर कठिनाई के पीछे हमारी इच्छा है , मान लीजिए कोई अमिर लड़की सड़क पर गरीब बच्ची को देख मन करे कि काश मैं भी इस आज़ादी से जी सकूँ ।
फिर कभी उसी की इस इच्छा से वह उस अवस्था तक पहुँच जावें तब वह बड़ी कार में दीखते बच्चों को देख फिर इच्छा करें ।

भगवान को फ़साना नहीँ हमें , माया इच्छा रूप में है , हम कुछ समय इच्छा रोक लेवें तो देखियेगा वहाँ भगवत् इच्छा से सब होगा और दिव्य होगा , अपनी लेश भर चाह न हो । इसलिये प्रेमी भक्त को कृपा का
अनुभव होता है , कारण अपनी चाह बिन मिला ।

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