सत्यजीत भाव 2

साधन भक्ति के प्रभाव से मनुष्य क्या नहीं कर सकता, अर्थात् सब कुछ कर सकता है। विशुद्ध भक्ति और भगवच्चरणारविन्द में उत्कट प्रेम होने पर मनुष्य में दैवी ऐश्वर्य प्रकट होने लगता है। जो व्यक्ति केवल परमेश्वर को ही अपना सर्वस्व (सर्वेसर्वा) समझता है, वह असम्भव से असम्भव कार्य को सम्भव कर देता है। ध्रुव जैसा छोटा-सा-बालक घने वन में अकेला बैठकर भगवद्भक्ति में तन्मय हो जाता है।

आधारं महदादीनां प्रधानपुरुषेश्वरम्।
ब्रह्म धारयमाणस्य त्रयो लोकाश्चकम्पिरे।।

ध्रुव की साधना भक्ति से सम्पूर्ण त्रिलोकी कम्पित हो उठी। यह भगवद्भक्ति का पराक्रम है।

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