लोकेष्णा और युगल रस । तृषित
केवल युगल रस होने से केवल युगल सँग ही होगा ।
लोकेष्णाओं से लोक संग्रह होते है ।
अगर भीतर प्रीति या युगल सेवा भरकर ही वृन्दावन वास मिलता तो वृन्दावन में अंगुली से गिन लिये जावें इतने प्राणी होते ।
परन्तु भक्त या प्रेमी हेतु कोई संग्रह वान्छा होना ही अधर्म है ।
प्रेमी के हृदय में रस सुधा होती है कोई और तिजोरी हेतु स्थान होता ही नही ।
प्रेमी को अपने प्राणाधार प्रेमास्पद का सेवक होना है ।
सेवक को अपनी चिंता होवें तो वह सेवक नही है ।
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