दुत्कार और दीनता । तृषित

दीन के प्रति दुत्कार और दीनता का दिखावा सँग नही हो सकते । दुत्कार सहना ही दीनता है ।

दीनता का वास्तविक याचक दीन-हीन के प्रति आदर से भरा होता है अर्थात् जो सहज दीन है वह वरिष्ठ है ।

अपने जीवन में आये किसी भी दीन का आदर आपके जीवन में आ गया तो मुझसे मिलने की आपको जरूरत ही नहीं है आपका यह अनुग्रह मुझपर कर्ज होगा ।
         और दीन के प्रति भरा दुत्कार ना छुटे और मेरा सँग भी होवें तब वह मेरी हत्या का सरलतम उपाय ही है ।
(क्योंकि किसी दीन को दिये कष्ट में भागीदारी होने से मुझे श्रीयुगल आश्रय रहने वाला ना होगा)

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय