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Showing posts from August, 2019

तृषित का अर्थ

तृषित । यह रस स्थितियों में प्रकट उनकी अवस्था है , जी रसिक शेखर । जहां प्रिया जु सन्मुख तृषित चकोर हो जाते है । वह ही रसिक शेखर तो वहीँ परम् विशुद्ध रस की प्यास । यह तृषा अति उज्...

मान विलास - तृषित

*मान विलास* स्वार्थ विवश वर्तमान जीव प्रीति से भावतः विमुख है , अति भोग और आधुनिकता में रुचि के कारण । पाश्चात्य स्थितियाँ प्रीति शून्य है ...लज्जाशून्य है । प्रीति में नित्य गाढ मधुता है , जो अनुभव होगी संस्कृति परम्परा के सँग से सजे जीवन मेंं , भविष्य के जीवन में ज्यों अभिव्यक्ति ही बढेगी तो अनुभव सिकुड़ रहा होगा । जीवन जितना पौराणिक अनुभव भरा होगा उतना सहज अनुभवों से भरा होगा । एक दो पीढी पूर्व लज्जा आदि प्रीति श्रृंगार समाजों में भरे हुये थे । अब वह घट रहे , सो प्रीति (सहज नायिका) के खेल अनुभव में नही हो सकेंगें । प्रीति में मान भ्रांतिवत् मान दृश्य है पर उसका प्रभाव भ्रांति नहीं है । प्रियाजू का मानिनी विलास एक सारँगता भरा सौंदर्य है अति कोमलता से नायिका का वह विलास नायक सन्मुख में प्रफुल्लता बढने या असमर्थता बढने पर दृश्य है । श्रीप्रिया अपने प्राण प्रियतम से कदापि रूठती या रुसती नही है । वह रोस एक नायिका का अपनी भाव स्थिति को छिपाने से खिला श्रृंगार भर है । सहज प्रेमी सदा अपनी प्रीति छिपाकर प्रेमास्पद के सुखों को ही सजाने में मग्न है । आधुनिकता स्वार्थमय होकर इस प्रीति के विपरित ...

बादल - तृषित

पसीना-ए-शिकायतें थी उनकी , बहुत देर से जज्बातों के बादल ना बरसे बरसे तो सही कही पर , छुपा लूँ खुद को , मेरे इन कागज के घरोंदों पर ना बरसे बादल तो फिर दिले-बादल थे , बदलते मौसम वो क्या...

निकुँज

*निकुंज* निकुँज हृदय , क्या महिमा-क्या स्वरूप कहना संभव है वाणी से  इनका । निकुंज है हृदय ....किसका हृदय श्रीश्यामा का हृदय श्रीश्याम का हृदय । यद्यपि ये पृथकता है नहीं परंतु ली...

निभृत

निभृत.......... विशुद्धतम् प्रेम अवस्था सदा ही मुखरित होती है वाणी शून्यता के रूप में । शुद्ध से शुद्धतम् की ओर , तरल से सान्द्र की ओर गतिमान होती प्रेम स्थिती स्वयं ही अवश होती जात...

अन्तरिक्ष , तृषित

*अन्तरिक्ष* अन्तरिक्ष , इसका सम्पुर्ण अनुभव अन्तर ही कर सकता है क्योंकि अन्त रहित क्षेत्र है अन्तरिक्ष । बाह्य लोक में ग्रह नापने के नाम पर सामर्थ्य का दुरपयोग ही है क्यों...

माधुर्य-ऐश्वर्य भक्ति तृषित

लोक में अपने सरकार पर अपना सब भार डाल दिया जाता है । और सरकार से केवल ऐश्वर्य भाव सँग ही सम्बंध रहता है । अर्थात् कामना पूर्ति भर । सरकार इह लौकिक हो अथवा पारलौकिक विशाल ऐश्व...

हरिदासी उत्सव

हमारे श्रीहरिदासी रस में श्रीयुगल नित्य बिहारित है , प्रियाप्रियतम नित्य है और  नव रस में खेल रहे है (निकुँज उपासना) सो उत्सवों को रसिक आचार्य उत्सव अनुगत मनाया जाता है , नि...