*मान विलास* स्वार्थ विवश वर्तमान जीव प्रीति से भावतः विमुख है , अति भोग और आधुनिकता में रुचि के कारण । पाश्चात्य स्थितियाँ प्रीति शून्य है ...लज्जाशून्य है । प्रीति में नित्य गाढ मधुता है , जो अनुभव होगी संस्कृति परम्परा के सँग से सजे जीवन मेंं , भविष्य के जीवन में ज्यों अभिव्यक्ति ही बढेगी तो अनुभव सिकुड़ रहा होगा । जीवन जितना पौराणिक अनुभव भरा होगा उतना सहज अनुभवों से भरा होगा । एक दो पीढी पूर्व लज्जा आदि प्रीति श्रृंगार समाजों में भरे हुये थे । अब वह घट रहे , सो प्रीति (सहज नायिका) के खेल अनुभव में नही हो सकेंगें । प्रीति में मान भ्रांतिवत् मान दृश्य है पर उसका प्रभाव भ्रांति नहीं है । प्रियाजू का मानिनी विलास एक सारँगता भरा सौंदर्य है अति कोमलता से नायिका का वह विलास नायक सन्मुख में प्रफुल्लता बढने या असमर्थता बढने पर दृश्य है । श्रीप्रिया अपने प्राण प्रियतम से कदापि रूठती या रुसती नही है । वह रोस एक नायिका का अपनी भाव स्थिति को छिपाने से खिला श्रृंगार भर है । सहज प्रेमी सदा अपनी प्रीति छिपाकर प्रेमास्पद के सुखों को ही सजाने में मग्न है । आधुनिकता स्वार्थमय होकर इस प्रीति के विपरित ...