बादल - तृषित
पसीना-ए-शिकायतें थी उनकी , बहुत देर से जज्बातों के बादल ना बरसे
बरसे तो सही कही पर , छुपा लूँ खुद को , मेरे इन कागज के घरोंदों पर ना बरसे
बादल तो फिर दिले-बादल थे , बदलते मौसम वो क्या समझें
तलब-ए-पानी अब आग हो रहा , हाय मेरे शिकवें अब कहाँ बरसे
बरसात को कोई तालीम नहीं कि तुम कहो उतनी ही बरसे
गीले घावों की उफ्फ़ कहाँ सिमटे कि सब्रे-आस्माँ कहीं ना बरसे
सिलसिला मौसम-गीचगिचे दिल- सुलगते ख्वाबों के बीच
कोई बादल बरसे तो कहाँ बरसे
तलाशतें नूरानी तकदीर का नाच , बरसे फिर बरसे ,
ना बरसे तो कहाँ बरसे
निगाहों के कटघरे बरसा एक बादल , खौंफ में खडा भी बरसे
तरसे नैनों से पूछो पता बादलों का , अब भी ना यें बरसे तो कहो कौन बरसे
पानी भी होना तुम , अंगारें भी होना , बादल जो हुये तो जवाब देना भी तुम
बरसे तो बरसे , मेरे कागज के ख्वाबों पर ही हाय तुम यहाँ और वहाँ क्यों बरसे
बादल हूँ , ज़िन्दगी है मेरी इश्के-तूफानों में सरक-सरक कर बरसना यारों
जितने उछले फिर जले , हाँ जितने भरे थे उतने तो हम अब तलक कहाँ बरसे
हसरते-ओ-तरकीबें ना हो , जिन दिले-बादलों की गुफ्तगु को फिर बुलाने की तुममें
उन इश्के-फितुरों के छा जाने पर , दमे-आदम तेरी फ़िकर की नज़रें फिर क्यों बरसे
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