अनन्य लोलुप्त - तृषित
बन्दर अगर हिरण के शिशु को कह्वे कि निज माँ का सँग ना करो तो ऐसा मान लेने पर क्या हिरणी का शिशु बन्दर के परिकर में मिल सकेगा ??
गौवत्स भी निज गौ-माँ का ही सँग चाहेगा ।
वैसे ही भीतर प्रीति का समुद्र बिन्दु-बिन्दु एकत्र होने पर स्वतः श्रीवृन्दावन रस में प्रीति होगी ।
जातिय एकता हो भावना की । अर्थात् प्रेम । प्रेम ही प्रेम का बीज है और आश्रय-विषय-पोषक-रक्षक-भर्ता-श्रृंगारक सभी कुछ प्रेम का प्रेम ही है सो अनन्यता स्वभाविक होती है । निज जनक शक्ति कितनी ही लघु हो उसी में सम्पुर्णता दर्शन होना चाहिये जैसा कि पँक (कीचड़) में प्रकट होने से कमल पंकज नाम से छुटना नही चाहता । मनुष्य को जो बुद्धि मिली है वह ही उसके लिये हितकर है विवेक होकर और वही उसे मूर्ख सिद्ध करती है जैसा कि पथिक बडा पाने के लिये इष्ट ही बदलते रहते है जबकि हाथी के तन पर घूमती चींटी भी हाथी होने की भावना नही करती ...वह चींटी होकर अपनी सेवा में तत्पर है ।
कहने का अर्थ यही है भावुक की भावना अगर वास्तविक है तब कोई कहे कि अन्य स्थल पर इतना लाभ है तब भावना बदल नही सकती ।
भाव-पथ का भाव कमल खिलना ही तब प्रारम्भ होता है जब जीव मान लें कि मुझे अब यही से सुरभित-स्फुरित होना है । (चित्त की अति चंचलता ही जीवनहीन कामना है , रसबिन्दु के स्थिर आश्रय लेने से ही जीवन खिल पाता है)
गुलाब की कलि को अन्य पादप अपनी महिमा कहे तब वह अन्य जाति का फूल अपनी इच्छा से नही हो सकता । कलि को खिलने हेतु स्वयं को गुलाब का ही मानने का अभ्यास करना होवे तब वह निजता में (प्रीति) नही है ।
खिलती हुई कोई कलि अन्य किसी फूल का सौंदर्य देखकर या सुगंध अनुभव कर अगर स्वरूप-स्वभाव बदलने का चाहें तब वह निज वंश का आदर नही कर पाने से स्थिर रस ना ले पाती है और ना ही दे पाती है (यहीं विकार दृश्य होने पर निज-कुल विनाशक होता है) तृषित ।
तत्वत: वर्तमान में वासुदेव की अपेक्षा अनिरुद्ध प्रीति है जबकि सम्पुर्ण श्रीकृष्ण की ही प्राप्ति भर यह पथ नही है यह उनका हृदय राज्य है - भावराज्य श्रीवृन्दावन रस । श्रीवृन्दावन । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । वासुदेव अपना हृदय कुँज खोलकर प्रकट कर दे और कोई अलि उड़ सके जबकि प्रकट श्रीकिशोरी चरण सुगन्ध से उसके प्राण बींधे रहने चाहिये इस दिव्यतम सुरभता में डूबकर । सो वास्त्विक लोलुप्त छुट ही नही सकता ।
अपनत्व का अभ्यास कौन करता है ? निजता छुट कैसे सकती है ? अनन्यता स्वभाविक ही हो सकती है ।
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