प्रेमास्पद उपहार । तृषित
कोई भी दिव्य स्थिति किसी उपहार को गृहण नही करती । उसे अपने प्रेमास्पद को निवेदन करना चाहती है ।
जैसे श्रीहनुमानजी की शरण प्राप्त होने पर श्रीहनुमान जी द्वारा श्रीराम शरण मिलती है और श्रीराम जी उन्हें आगे श्रीभक्तिमहारानी श्रीकिशोरी सियाजू को निवेदन करना चाहते है । नित्यप्रेमी परस्पर श्रृंगारक है ।
श्रीहरि आश्रय से श्रीरसिक आश्रय और श्रीरसिक आश्रय से श्रीहरि आश्रय पुष्ट होता है ।
यह बात बतानी इसलिये आवश्यक कि पथिक एक बार आश्रित होकर स्वयं को आश्रय की वस्तु माने फिर वह अपने प्रेमास्पद को निवेदन करना चाह्वे यह उनका सुख विषय है । आश्रित में पृथक् सुख नही होता ।
और सहज पथिकों को यह सब अनुभव मिलते रहते है । यह परस्पर श्रृंगार होने से विचलित स्थिति होती होवें तब समाधान एक ही है कि श्रीयुगलसरकार के संयुक्त श्रृंगार (मिलित श्रृंगार) की लोलुप्ति अपनी ही ओर से उठ जावें जिससे यात्रा का निभृत विश्राम प्रकट हो सकें । वरण भीतर शरण सिद्ध होने पर निजप्रेमास्पद को निवेदन किया ही जायेगा (सम्पुर्ण तत्व युगलतत्व ही है) तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी
Comments
Post a Comment