प्रिया का हेतु प्रियतम माधुर्य-विलास , तृषित
रिसते हुये पीतांबरधारी खिलती हुई कनकलता ऐसो कर्णामृत है श्रीकृष्ण माधुरी श्रीप्रिया हेतु ।
कनक वल्लरि श्रीप्रिया को सिंचित इसी रस से किया जा सकता है । यही उनका जीवन-प्राण सर्वस्व है ।
प्रियतम गुणगान श्रवण में वह तनिक भी अपना तर्क नही देती ।
जैसे नवप्राण का नव रस माधुर्य सुन रही हो और अलबेली मधुरताओं से सखी को गुरुवत पाकर द्रवित हुई इसी रसार्थ विराजी हो ।
निज पिय की मधुरता जहां ध्वनित हो वह प्रियतम माधुर्य रिसता आता श्रीजी श्रवणपुट से उनके हिय में । वही इस रस की सर्वतोभावेन तृषा है ।
नयन से ..और और कहती । अधर जैसे हिय माधुरी से भीग ललित हो मिठास में भीगे रहते । पिय रूपी रस की सुगंध उनसे आने लगती । श्रवण ही वह हो जाती । नव वधु को वर का दर्शन जितना सुख देता उससे अनन्त गुणित वह शीतलता पाती और गान करने वाली ही सखी से लज्जावत आलिंगित हो जाती । और और और क्या कहुँ री सखी ...श्रीप्रिया सुख !!
श्रीप्रियतम सौंदर्य माधुर्य का विरद गान श्रीप्रिया रूप माधुरी को हिय में प्रकट करता है ।
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