फेसबुक और विचार तृषित

जगत् सौंदर्य-सफलता-नवीनता-आविष्कारित विचार के प्रति भागता है । 
वास्तविक भावुकों से निवेदन है कि वास्तविक रसभोगी ही रस का आदर करते है सो अपने जीवन की किसी भी सेवा से अन्य से सम्मान अपेक्षित ना ही रहें । अर्थात् कितने लाइक या कितने कमेन्ट्स इससे परे जो है वही इस विचारमंच का सेवक और भोक्ता भी है । विचार शुन्यता ही विचार का भोग है । उछलती लहर कही तो उछलें । 
फेसबुक पर सदा से लिखना मेरा निज स्वार्थ रहा है । विचार सेव करने हेतु हो या उफनते विचारों को उफानने हेतु इस विचारधरा का प्रयोग । जिससे भीतर सहजता शीतलता रहें । अभी कई माह से मेरे अति कम विचार प्रेक्षित हुये यहां जबकि अन्य मार्गों से वह झरते रहे है इस काल में निजरससेवा न मिलने पर बहुत से कथित मित्रों ने छोडा भी यहाँ से । इससे सिद्ध होता है कि मौन स्वीकृति का संग फेसबुक की संरचना नही है । यहाँ वैचारिक तनाव ही स्वीकार्य है । अपितु यू टयूब चैनल के मासिक आंकलन में फेसबुक से 1 से 2 प्रतिशत ही सहभागिता ध्वनिभुत भाव सुनना चाही है अर्थात् 1000 में से 10 । सो यहाँ उछलते लाइक-अनलाइक से परे अब भी निज स्वार्थ से भाव दिये जायेंगें । जैसे विचार शुन्य होना अथवा विचार को जमा कर भूलकर भजन में होना अथवा वास्तविक पथिक के व्याकुलित हृदय की सेवा होना ।
विश्व में किन्हीं भी प्रशंसा या प्रसिद्धि चाहने वाले को जब रसहीन होने पर जगत ने छोडा तब उनकी स्थिति भीषण रही है , ऐसे में इतने बड़े नाम भी है जो आश्चर्य दे सकते है , 2007 विश्वकप क्रिकेट में हारने पर मान्यवर दिव्य सामर्थ्य प्राप्त सचिन जी पर हमले ना हो सो कई दिनों तक विशेष सुरक्षा दी गई और कई दिनों तक वह घर से ना निकले । जबकि इस देश का इतना गौरव स्तर आप-मैं नहीं बढा सकते । ऐसे हर क्षेत्र में कई नाम है जिन्हें मानकर-पूजकर जगत भुल गया । 
सो जगत की सेवा की जावें पर कीर्ति आदि अपेक्षा ना होवें , जगत का सिद्धान्त ही है संसृत होना (सरकना)। 
जगत् तो सौंदर्य-सफलता-नवीनता-आविष्कारित विचार-कौमार्य आदि के प्रति भागता है । 
कोई-कोई ज्ञानी-विज्ञानी फेसबुक को लेकर मानसिक तनाव तक में चलें जाते है । 
यहाँ केवल निज विचार शुद्धिकरण का एक प्रयोगवत संग करिये । लाइक आदि में पागल होने से कुछ न होगा क्योंकि मृत्य एकान्तिक ही घटेगी और मेरी शव की छबि भी यहाँ पसंद की जावेगी । 
यहाँ वैचारिक रूप आधुनिक जीव विचारों की शॉपिंग कर रहा होता है , किसी विचार में डूबता नही है बस उसे जांचता है जैसे सारे शॉपिंग मॉल में कपडे देख सबको अच्छा कह कर कोई फ्री नेपकिन को यूज करके लौट जाया जावें । 
अगर किसी को लगता है कि फेसबुक मित्रों को मेरी आवश्यकता है , फेसबुक पर मैं अपने विचार ना दूँ तो बहुतों के जीवन में भूकम्प आ सकता है तब इसे प्रयोग भी करिये । कुछ दिन दूर होकर । 

एक सौंदर्य सार निधि की ही प्रीति के वशीभूत होकर जीवन में होना भक्ति है ।

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