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Showing posts from July, 2017

निर्धनता और दीनता , तृषित

अगर आप अमीर नहीँ है , निर्धन है और भक्ति पथ पर है तो मेरा विनय है अपना पथ मत बिगाड़ियेगा बड़ी कृपा से दैन्यता प्रकट रूप सँग है आपके । मैंने जीवन में बहुत पथिकों को दैन्य अभिनय कर...

प्रेमाम्भोज-मकरन्द में किशोरी श्रृंगार

*प्रेमाम्भोज-मकरन्द’ में आया है* कि ‘श्रीकृष्णस्नेह’ ही श्रीमती राधा के अंग का सुगन्धित उबटन है, इस उबटन को लेकर वे तीन काल स्नान करती हैं। उनके सर्वप्रथम- पूर्वाह्ण-स्ना...

राधा तत्व , तृषित

राधा तत्व कबहुँ जग पुष्प को अग्नि से मिलावे है । का होंवे राधा तत्व । अरी पिय रस पुष्प ते झरित बिंदु मकरन्द मात्र । न्यून राशि हिय समेटे ।  ऐसी पिय को सुख सुधा निधि । पिय मीन वत ...

सुरभित पिय हिय ते , तृषित

सुरभित पिय हिय ते सखी तोहे कछु कहुँ , मैं न जानूँ सखी पर मोरे हिय ते कोई सौरभ उठे । ऐसौ लागे है कि पिय मोरे हिय ते छिप गए सखी । सखी ऐसी सौरभ तो से का कहुँ । मेरे अश्रु भी न ढुरके कबहु...

गुरु , तृषित , 2016

गुरू एक वर्ष पूर्व का यह भाव *गुरु* - सत्यजीत तृषित जय जय श्यामाश्याम !! गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाई । गुरु तत्व पर कभी विस्तार से बात करनी थी , उत्सव के दिन इस तरह की तात्विक बा...

तू ही तू निकुंज रस भाव

[7/17, 15:30] सत्यजीत तृषित: बहुत सरल सहजता से [7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तू और मैं मैं और तू हम हो जाएं [7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: एकरस एकरूप एकवय सब एक तो उत्तर भी एक ही ना [7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: हम नहीं तुम बस त...

भोग से प्रेम इंद्रिय की पिपासा का विकास , तृषित

अभी हृदय में एक प्रश्न का उत्तर उदय हुआ भोग और प्रेम में कैसे समझ आवें  कि हमने वस्तु का भोग किया अथवा प्रेम रस ही रहा ... उत्तर ...  भोगी हुई हर वस्तु विष्टा हो जाती है । अर्थात वस्...

क्यों बदलते हो , तृषित

क्यों बदलते हो ... नेत्र खोलोगें सब बदलता दिखेगा । हर एक एक कतरा जिसे खुली आँखों से देखते हो । पर तुम खोजते हो वह जो ना बदलता हो । तुम जहाँ जाते हो बदल जाते हो , भाषा -लहजा सब बदल जाता...

पिपासा , तृषित

पिपासा एक बात कहुँ , तब अगर पागल कर देते तो कम से कम यह कसक तो रह जाती कि वजह क्या है ?? पिपासा जितनी पुरानी होती उतना उसका नशां महका देता । एक दौर कैसा था भीतर आग सुलगती दर-दर तुम्ह...