स्वामी जु का हृदय , तृषित
स्वामी जी (सखी जु) के उर में तो नित्य युगल एक ही है । प्रकट रूप और जहां युगल प्रकट वही उनका उर (हृदय) ही तो धरा है युगल की अर्थात श्री धाम । अतः युगल का वास होने से स्वभाविक रस का आश्रय भी उनका हृदय ही वृन्दावन है । सत् शक्ति से वृन्दावन प्रकट है । वह रसराज-महाभाव को प्रेमाश्रय देता है । ऐसा है हृदय श्री स्वामी जु का । युगल को आश्रय प्रदाता निकुंज और केलि विलास अर्थात लीला लहरी भी वहीँ रस हृदय है ।
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