निर्धनता और दीनता , तृषित
अगर आप अमीर नहीँ है , निर्धन है और भक्ति पथ पर है
तो मेरा विनय है अपना पथ मत बिगाड़ियेगा
बड़ी कृपा से दैन्यता प्रकट रूप सँग है आपके ।
मैंने जीवन में बहुत पथिकों को दैन्य अभिनय करते पाया है
यथार्थ में साधन हीनता की दैन्यता और साधन त्याग का अभिमान
दोनों बाहर से एक दीखते है । पर दोनों विपरीत ले जाते है ।
जीवन में मैंने धनवान सरल भी देखे सहज , निर्वस्त्र सम । परन्तु
इसे वह त्याग नही कहते , जीवन मानते है अपना ।
मुझे बड़ी पीड़ा होती है जब त्याग का अभिनय हो ...
धनवान धन का मद और निर्धनता से प्राप्त गुण दोनों चाहने लगे है
यहाँ त्याग में सत्यता न होने से सहज साधन हीन पथिक की सहजता प्रभु को और भाने वाली होती है ।
परन्तु साधन हीन निर्धन विवेक शुन्य भी कुछ होते अर्थात भोलेभाले ।
उन्हें निरन्तर प्रभु का नाम पीना है , बाकी गूढ से गूढ सत्संग को
वह जीते है यह मैंने देख लिया है , सभी को ज्ञान आदि में श्रेष्ठ मान
सहज भगवत भाव उनमें होता है ।
तृणादपि सुनीचेन ... तिनके से भी न्यूनता इस दैन्यता को पढ़ना
कहना प्रवचन देना आदि सरल है
तिनके को देखिये , चींटी को भी वह ईश्वर मानता है , वायु के भी
हल्के से आवेग से स्थान बदल लेता है ... कहना और जीना और
अभिनय यह सब अलग अलग है । प्रभु अभिनय में भी श्रेष्ठतम है ,
जीव की अभिनयात्मक भक्ति भी प्रभु सत्य मानते है यह उनका
गहरा अभिनय ही है ... अप्रेमी में प्रेम का दर्शन
- तृषित !!
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