प्रेमाम्भोज-मकरन्द में किशोरी श्रृंगार

*प्रेमाम्भोज-मकरन्द’ में आया है*

कि ‘श्रीकृष्णस्नेह’ ही श्रीमती राधा के अंग का सुगन्धित उबटन है,
इस उबटन को लेकर वे तीन काल स्नान करती हैं।

उनके सर्वप्रथम- पूर्वाह्ण-स्नान का जल है- ‘कारुण्यामृत’ अर्थात् प्रथम कैशोरावस्था ,

मध्यम- मध्याह्न-स्नान का जल हैैं- ‘तारुण्यामृत’ या व्यक्त यौवन और अपराह्न-स्नान का जल है

‘लावण्यामृत’ यानी पूर्ण यौवन। कायिक गुणों में जो वयस् रूप और लावण्य हैैं- वही श्रीमती का त्रिविध स्नान-जल है।

‘लज्जा’ रूपी नील श्याम रेशमी साड़ी उनका अधोवस्त्र है।

कृष्णानुराग’ उनका अरुण उपवस्त्र- ओढ़नी है।

‘अंग-सौन्दर्य’ ही केशर है,

‘अभिरूपतारूपी सखियों का प्रणय ’ चन्दन है।

‘माधुर्यमती स्मितकान्ति’ कर्पूर है।

केसर, चन्दन और कर्पूर- इन तीन वस्तुओं का श्रीराधिका के अंग पर विलेपन हो रहा है अर्थात् सौन्दर्य, अभिरूपता और माधुर्य से वे नित्य विभूषित हैं।

‘श्रीकृष्ण का उज्ज्वल रस’ ही उनके अंगों पर लगी हुई कस्तूरी है।

उनका ‘प्रच्छन्न मान और वाम-भाव’ ही मस्तक का जूड़ा है।

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