तू ही तू निकुंज रस भाव

[7/17, 15:30] सत्यजीत तृषित: बहुत सरल सहजता से
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तू और मैं मैं और तू हम हो जाएं
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: एकरस एकरूप एकवय सब एक तो उत्तर भी एक ही ना
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: हम नहीं तुम
बस तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: बस तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: मुझ में भी तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तुझमें तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: बस
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तुममें भी तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: और तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: और तुम
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: बहुत कच्ची हूँ
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: भाई जी का तू ही तू पद पढा कभी
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: तो श्यामा जु कहाँ हैं
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: सखी हृदय में मात्र
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: श्यामसुंदर में
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: परस्पर डूबे हुए ना
[7/17, 15:33] सत्यजीत तृषित: सखी उनका प्रेम है
[7/17, 15:41] सत्यजीत तृषित: श्यामा को श्यामसुन्दर में भी श्यामसुन्दर को देखना । अपने में भी श्यामसुन्दर वह देखती । वस्तुतः श्याम सुंदर ही अपना बीज तत्व वह पाती । श्यामा का मूल वास है सखी हृदय में सखी का बाह्य जींवन विरक्त है और आंतरिक हृदयोन्मुखी कमल के मूल नित्य श्यामाश्याम को अनुराग । यो अनुराग बिंदु ही निभृत निकुंज है ।
[7/17, 17:09] सत्यजीत तृषित: अपने में तो वह हल्का सा ही छलकती है सखी भाव की छलक मात्र । शेष तो वह श्यामसुंदर में पूर्ण वसति । श्यामसुन्दर के समस्त सज्जा श्रृंगार अति न्यून रहे वह भी निभृत रस में सजे व्यवहारिक नहीँ उतरते । श्री राधा मय वह श्रीकृष्ण ऊपरी धारण कर भीतर तो निभृत में वास करते है ।

अब बात यह है कि यहां किसे वह क्या दिख रहे है , श्यामसुन्दर का पूर्ण राधा भाव दर्शन ही दुर्लभ था जिसे चैतन्य महाप्रभु आदि ने बीज रोपण कर रसिकों ने प्रकट किया ।

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