भारतीयता तृषित

*भारतीयता*

वन्दे भारती । हमारी चेतना के तंतु-तंतु भारतीयता के ऋण से मुक्त नही हो सकते है ।
अखिल विश्व ही क्या ...स्वयं मह-जन-तप सत्यलोक (वैकुण्ठ) भी स्वागत करता है हमारा तो कारण है भारतीयता ।
भारतीय होना माँ भारती का वरद है जिसे भुलाया नही जा सकता है ।
प्रणाम आप सभी के श्रीचरणों में । (भारत की दिव्य धरा पर बिहरते प्रति चरण दिव्य तेजोमय है)
प्रथम अपनी वर्तमान स्थिति निवेदन कर दूँ ...कुछ अति सघन मधु सरोवर में बलात् डुबकी लगी होने से लोकोत्तर क्रिया-प्रतिक्रिया शुन्य प्राय: ...तैरना ना आना यहाँ वरदान होकर मधुता में नित्य जीवन तृषा भरता रहता है । परन्तु वर्तमान में एक दिव्यतम चेतन चिन्तन मुझे करना हो रहा ...जो कि मधुता की इस स्थिति और चेतन चरित्र को अनवरत ना कह पाने में भाव स्थितियों के अग्रिम द्वन्द के भय से प्रकट ना हुआ ।
फिर वह चेतनतम चरित्र गम्भीर लोकोत्तर स्थिति में लोक-कल्याणमय आज भी है और नित्य रहेगा । कल्याण का एक अर्थ श्रृंगार भी हो सकता है क्योंकि स्म्पुर्ण शक्तियों सँग संयोजन संस्कार (विवाह)को कल्याण कहा जाता रहा है । अर्थात् अचेतन युग को चेतन करती प्रीति मदिरा के चरित का चिन्तन ऐसी स्थिति को करना जिसे लोक की तनिक चिंता नही । सो लोक चिंता से परे शहद के सरोवर में भीगी मक्खी आपके समक्ष लौकिक होकर सेवायत है ।(निज स्वार्थ में चेतनचरित्र जीवनार्थ)
भारतीय क्षमताओं को किसी एक लेख में नही निरुपित किया जा सकता है । यहाँ शास्त्रों ने अनन्त प्रकार से यह यश बारम्बार गाया है । जैसा कि निवेदन किया है कि आध्यात्मिक स्थिति शास्त्र या शास्त्रज्ञ (रसिक)सँग पुष्ट होती है तदपि शास्त्र बोध और आध्यात्म में आज द्वन्द है अर्थात् शास्त्रीय-ज्ञाता आध्यात्मिक अनुभव-शुन्य और आध्यात्मिक अनुभवी शास्त्र में निज-रसता शुन्य हो रहे है । और नवीन पथ बन रहे है ...स्मरण रह्वे हम किन्हीं ऋषियों की कोई शाखा से झरे कोई अंकुर भर है शास्त्र से परे आध्यात्मिक विज्ञान नही जा सकता है ...वह दिव्य चेतनायें जो अक्षर-बद्ध धर्म रच गई है उससे परे कोई बात शेष है नही । अर्थात् वर्तमान में किसी आध्यात्मिक को लगें कि उनका अनुभव अभूतपूर्व है तो अभी श्रुति-स्मृति की दिव्यता का उन्हें अनुभव नहीं हुआ है । भीतर अध्यात्म उदय होने पर तुष्टि-पुष्टि चेतना यहीं से ग्रहण करती रही है । अर्थात् शास्त्रीय रीति ही व्यापक अध्यात्म
वर्तमान में है भले नवीन संस्कारों को छुते वह आध्यात्मिक मनोभाव इसे नही जानते हो परन्तु यहाँ का शास्त्र व्यापक है (श्रौतव्य-स्मृतव्य वही ही है) ।
अभी जिस विषय पर बात हो रही वह इतनी पेचिदा नहीं है ...बडी सरल है ! भारतीयता से भारतीय मुक्त नही हो सकते और ना ही वह आध्यत्मिकता को त्याग सकते है । यह बात प्रवासी भारतीय (N R I)जल्दी स्वीकारेंगे । लेकिन इस विषय को अनवरत रखने पर प्रवासी भारतीय मुझसे रुष्ट भी होंगें क्योंकि भारतीय धरा ने जिन्हें तज दिया उनकी बौद्धिकता को हम भारतीयों को कम से कम आध्यात्मिक मामलों में तजना होगा । किन्हीं आध्यात्मिक कारणों से भारत से वह अपने सम्बन्ध मिटा नही सकते अपितु इस प्रयास में उनमें समग्र भारत से रोष भर सकता है ।
वस्तुतः सभी जानते है कि मानव उत्तम सृष्टि है ...उनमें  भी भारतीय होना सर्वोत्तम उपलब्धि है । आज प्रति भारतीय गैर भारतीयता की ओर गमन कर रहा है परन्तु ऐसा भारतीय चाह कर भी भीतर की सृष्टि को मिटा नही सकता । आपका भारतीय होना एक सम्मोहन तंत्र है आन्तरिक उत्थान हेतू । भारतीय आन्तरिक उत्थान से छूटने पर विस्फोटक हो सकते है ...परन्तु तब भी भीतर का वह समग्र पोषण भारतीयों को तज नहीं सकता । भारतीय है क्या ?? इसका सूक्ष्म विज्ञान विश्लेषण आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में हम सभी भारतीयता से मुक्त होने में लगें है परन्तु हो ही नही सकते । भारतीय को एक विशेष रँग रूप दिया गया है वह किसी देश में पीढियाँ निकाल दे परन्तु व्यापक भारतीयता उसका पीछा नहीं छोड सकती जब तक माता-पिता में कोई एक भी भारतीय है । यह बात वरदान है (ना छूटने वाली भारतीयता) जिसे समझा नही गया है और आज भारतीय मनुष्य अतिआधुनिक होकर दिल बहला रहा है । परन्तु भारतीय वेस्टर्न रीति से भोजन भी करें तब भी वह अपनी रीति मिटा नही सकता । वेस्टर्न (पाश्चात्य)रितियाँ केवल भ्रांतियाँ है वह पशु-पक्षी को भी सूट-बुट  काँटा-चम्मच पकडा देते है ...आप उनके निर्मित कार्टूनों में यह मूर्खता देख सकते है ।
किसी पक्षी को सहज वृक्ष लता पर जीवनमय देखिये ...वह पक्षी होकर हर्षित है । उसे किसी विजा की चिंता नहीं है । वैसा ही सहज है भारतीय । निरा सहज कोमल सा  ...माटी की झोपड़ी में ...पर हृदय पर सघन सहजता । आधुनिकता का बहिष्कार नही कर रहा हूं यहां अपितु शास्त्र जितनी आधुनिकता देना चाहता वह तो बहुत दूर है । वह आधुनिकता निकट होगी जब सभी अपनी अपनी स्थिति से स्म्पुर्णता सँग जीवनमय रहेंगे । ध्यान रह्वे भारतीय अपनी झोपड़ी से नही निकले थे विश्व आता रहा है उनके पास टूटी हुई हड्डियों को जोडना सीखने हेतू । कुछ भारतीयों ने विलासित आधुनिकता में भले शास्त्र या वेद को उठाकर गिरवी रख दिया हो परन्तु कोई वैज्ञानिक कलाप बिना किसी भारतीय सहमति के सम्भव नही है ...सो यहाँ शोध होते रहे है और उत्तर मिला भी है इस धरा से । कभी कभी भारत भक्ति से भरकर डीपी बदलने वालों के भीतर लंदन-अमेरिका के श्वान कैसे इष्ट हो गये यह मुझे समझ नही आ रहा है ।
आप इतिहास में रूचि लें या किसी गैर-भारतीय का मनोविश्लेषण कर सकें तो अनुभव कीजियेगा कि उनमें भय है प्रति भारतीय से । इसका कारण उदार भारतीय नहीं खोज पाते परन्तु आपकी भारतीयता से एक दिव्य-ऊर्जा निसृत होती है जो कि गैर-भारतीय अनुभव करते है । परन्तु आश्चर्य है कि आज सम्पुर्ण भारतीय अपने पालतू पक्षी को भी मैक-जैक पुकारते है जबकि वह स्वयं कभी इस जीवन में मैक-जैक नही हो सकते । भारतीय प्रसिद्ध नृत्यकार जो कि गैर भारतीय रीति से नाचते हो जैसे कि नाम लूँ ही तो प्रभुदेवा  ...क्या भीतर भरी भारतीयता से मुक्त हो सकते है !  अपितु उनकी भारतीयता बडी ही आकर्षक चुम्बकीय है शायद ही कोई जैक्सन उनकी नकल कर सकें । हिम्मत बनें तो मेरी यह बात आधुनिक पीढी से शेयर करियेगा जिनके कानों में विदेशी संगीत भरा हो ...मैं शपथ पुर्वक घोषणा कर सकता हूं कि कितना ही मिटा लो मेरे नवयुवक मित्रों भारतीयता मिट नही सकती । यह बदलती डीपी सी भक्ति नही है भैया । नवयुवकों सँग आप कोई ऐसी गैर भारतीय विदेशी फिल्म भी देखें जिनमें कोई एक भारतीय कलाकार हो ...और सोचें कि क्यों इन्हें चुना गया है ? विश्व प्रसिद्ध गैर भारतीय कलाकार (बेन-किंग्सले) भी तृप्त अपनी कला से भारतीय गाँधीजी का अभिनय कर हुये है ।
भारतीय को भारतीयता का अभिनय नहीं करना है ...हाँ वह पाश्चात्य अभिनय कभी भारतीयता का अणु-अणु मिटाएं कर नही सकता है । विश्व सदा भारतीयता के धन को चोरी कर सकता है भले ही मार्क ज़करबर्ग हो ।
भारतीयता होना स्वभाविक गुरूता है ...भले दृश्य में भारतीय निर्धन हो परन्तु सदा ऊर्जात्मक वह अधिक भारी है । भारतीय कभी भले अपना आध्यात्मिक परिचय ना स्वीकार करें परन्तु वह अध्यात्म से रिक्त नही है । ...सो देश के विषद सार्वभौमिक चिन्तन काल में भी मैं रँग हुलास में भरा था ...किन्हीं को विचित्र भी लगा कि क्या यह भारतीय नही है जो कोई अभिनन्दन भरी बात कह नही रहा । हमारे यहाँ एक मात्र अभिनंदन है ...अगर कोई परतंत्रकालीन ब्रिटिश सैनिक जीवित हो और आप समर्थ होवें तो आप उनका साक्षात्कार लेकर छू सकते है उनके भीतर उतरी वह भारतीयता । भारतीयता को कितना ही ध्वस्त किया जावें अंतिम और प्रथम पुरुष का नाम सत्यव्रत होगा ...पालतू पशुओं में पाश्चात्य खोजते मेरे मित्रों केवल भारतीय होने भर मात्र से जीवन प्रलयशुन्य हो सकता है ।
सो मुझे उद्भव स्थिति प्रलय में भारतीयता सनातन खेलती दिख रही है । शास्त्र-शुन्य मेरी तृषित स्थिति केवल शास्त्र दर्शन के स्वप्न से यह कह रही है । भारतीय होना शास्त्र का एक अंग होना ही है क्योंकि बाहरी छद्म मिटाकर हम भारतीयता को देखें तो वह जन्म-मरण सर्व स्थितियों नित्यसंस्कार है अर्थात् स्वयं धर्ममय जीवन है । कथित विश्व के सँग ने भले हमारे भीतर के कल्याण को कहीं छिपा दिया हो परन्तु भारतीय का व्यापार और यहाँ तक असुरता भी कल्याणहीन नही है । इस धरती पर तो असुर शक्ति भी उद्धार पाती ही रही है पूतना हो या ताडका । सभी आसुरिक शक्ति का वास भी भारतीयता की परिधि के बाहर है । भारतीयता भौगोलिक ही नही व्यापक वरद-वृति है । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

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