श्रीराधावल्लभ सत नाम
श्रीहित प्रबोधानंदजी सरस्वती पाद कृत -
श्रीराधावल्लभ सत नाम
अनुष्टुप वृतम्-
श्रीराधावल्लभो राधाकान्तो राधैकजीवन:।
राधिका प्राण सर्वस्वो, राधिका रस लंपट:।।१।।
राधिका नागरो राधा, रसिको राधा पति:।
श्रीराधा रमणो राधा, प्राण सर्वस्व शेवधि:।।२।।
राधैक परमानंदो, राधैक परमोत्सव:।
राधैक परम प्रेमा, राधैक परमोदय:।।३।।
राधैक परम प्राणे, राधिका परमेसित:।
राधैक कृत संमोहो, राधैक व्याकुली कृत:।।४।।
राधैक रति तृष्णार्त्त:, राधैक सु वशीकृत:।
राधांग संग जीवातु:, श्रीराधान्यस्त जीवन:।।५।।
राधा-कटाक्षनाराच, गाढ़निर्भिन्न मर्मक:।
राधा भ्रू काल भुजगी, विभ्रभोद् भ्रांत चेतन:।।६।।
बाह्यांतश्चित्तविन्यस्त, राधा लग्न समाधिक:।
राधाविष्टतयाशेष, सुप्त वद् व्यवहारक:।।७।।
राधा ध्यान महावेश -विशे स्थूल वचो गति:।
राधा कामग्नि संतप्तो, राधा विरह विह्वल:।।८।।
राधिका संगमोपाय, रचनैक विमर्शक:।
प्रतिवर्त्म सदा राधा, पादांका लोक मत्पर:।।९।।
राधा पदांक सुश्लाध्यब्रजरेणु विरूषित:।
राधा वास दिगायातपवन स्पर्श निर्वृत:।।१०।।
श्रीराधानुचरी वृंद, संमान रस द्योतित:।
श्रीराधा देश विन्यस्त, प्रत्यध्वानध्र्य वस्तुक:।।११।।
राधादासीषु बहुधा, कृत दन्त तृणादिक:।
राधा सख्यर्पित स्वीय, मुद्रिका हार वेणुक:।।१२।।
राधाभ्रूभंगिमोत्तुंग, तरानंग शरार्दित:।
राधा प्रेम महावेश, मुग्धचेष्टा प्रपालक:।।१३।।
राधा परिरंभ लोभ- भ्रमत्सर्वकलेवर:।
राधानुराग वीथ्यैक, वीघूर्णबहिरंतर:।।१४।।
राधा काम महाज्वाला, लग्नोच्चाट सदास्थिर:।
राधासोम सुधासिन्धु, गाहनैक सुदोत्सुक:।।१५।।
राधाकामग्नि संदग्ध, श्यामांग रस वर्षण:।
राधा धम्मिल संवादि, बर्हि बर्हि विचूडक:।।१६।।
राधा रूचि कोशेय परिवीत कटिस्थल:।
श्रीराधा प्रियाराम, पुष्प रचित स्रग्विभूषण:।।१७।।
राधिका गुण नामादि वादि वंशी मुखाम्बुज:।
राधादृश्य स्पृश्यवृन्दा- वन मात्रैक केतन:।।१८।।
राधिका पद विक्रीत, स्वात्मा राधा रतोत्सुक:।
सदन्त तृणकाकूक्ति:, कृतराधानुवर्त्तन:।।१९।।
राधा भ्रूभंगचकितो, राधा कर्णोत्पलाहत:।
राधा कुचालकालंबी, राधाली परितर्ज्जित:।।२०।।
राधा हठ परिष्वंगी, हठाकुलित राधिक:।
स गदगद् स्मितोदार, राधा भत्सर्नतोषित:।।२१।।
राधिका वदनांभोज, मधु लब्ध मधुव्रत:।
राधाभिन्न स्नेहपूर्ण ललिताद्यैक गोचर:।।२२।।
राधाविलास कुंन्जातश्चित्र प्रसवतल्पक:।
राधाविजय सद्वत्र्मास्तीर्ण पर्ण दलावलि:।।२३।।
राधास्मेरास्यचन्द्रेक्षा, स्फीता पार रसांबुधि:।
परार्द्ध प्राण नीराज्य, राधांगछबि लेशक:।।२४।।
राधिका चन्द्रिकोज्जृम्भि, पूर्णानंदाब्धि संलुप्त:।
राधोपलंभनोद्धर्ष, लुप्त सर्वेति कृत्यक:।।२५।।
धृत पाणि सखी यत्न, राधा तल्पाप्तिनिर्वृत:।
राधाश्लेष सुखांभोधि, लीन स्व पर भेदधी:।।२६।।
राधा प्रथम संगोरूलज्जा भीभंगिजालिक:।
राधा सखी श्लाघ्य मान रति वैदग्ध वैभव:।।२७।।
कुंज रंध्रनिविष्टाक्षि, राधाली हर्षवर्षण:।
अति गाढोपगूढांग, राधा खेदोक्ति तोषित:।।२८।।
सगदगद् निषेधार्थराधावागमृतप्रिय:।
सुवेणी मूलमालंब्य , कृत राधास्य चुम्बन:।।२९।।
मद्यन्माद्य मुहु:पीत, राधाधर सुधा रस:।
वक्ष: कपाट संघृष्ट, राधा कुच घटी तट:।।३०।।
महा गाढाश्लेष खर्वी कृत राधा कुच द्वय:।
प्रिया द्वयैकतत्प्रेक्षि , राधाभी विस्मय प्रद:।।३१।।
महा सुख चमत्कार , सततोत्पुलकाकृति:।
राधा सुरत संग्राम, सरम्भव्यग्रविग्रह:।।३२।।
रद खंडित कंदर्प रणोद्यद्राधिकाधर:
पीन स्तन नखा घात, क्षुब्ध राधोन्मद स्मर:।।३३।।
राधा शिथिल हस्ताब्ज, रूद्ध नीवी मिलत्कर:।
राधिका कुच कुंभावलंबोत्तीर्ण स्मरार्णव:।।३४।।
राधा सखीजनास्वाद्य: , तदाश्चर्य रसांबुधि:।
विचित्र रति वीक्षातिचित्र राधा विमूर्छन:।।३५।।
प्रतिक्षणानन्त गुणोद्वर्द्धि- राधा रति स्पृह:।
राधाश्लेष रसावेश, महारोमांच विघ्नधी:।।३६।।
राधिका रति संमर्द्द , रसावेश समुन्मद:।
राधा रति रण श्रांतिस्वेदाम्बुरचितानन:।।३७।।
उर स्थली नित्य भूषा, रत्न मंजरि राधिक:।
राधा मुखार्पित स्वीय, मुख तांबूल चर्वित:।।३८।।
राधा मुखाम्बुजाकृष्ट , चर्वितास्वाद संमद:।
राधा क्रीड़ा मृग शिशू , राधिका दारू यंत्रिक:।।३९।।
प्रतिक्षणान्योन्य भूषा , कृत राधांग भूषण:।
राधा-कुच-तटी-पत्र , प्रिया कंबु कराबुंज:।।४०।।
राधा मुख शरच्चन्द्र , चकोरायित लोचन:।
राधा कुच स्वर्ण पद्म , कोष वद्धाक्षि षट्पद:।।४१।।
राधा तदाली सहितो , छलत्केलि रसार्णव:।
राधिका भूषित स्वांगं , सोभेक्षा हर्ष फुल्लित:।।४२।।
राधा कोटि मुधाकारि , राधा नर्मोक्ति निर्वृत:।
प्रतिक्षण कृताम्रेड , राधा सुरत भिक्षुक: ।।४३।।
राधा कुच तटी शायी , स्वोर: शायित राधिक:।
उरस्थलं विना शैयामधि रोपित राधिक:।।४४।।
राधा मान कला भीतो , राधानुनय कोविद:।
राधा मान ग्रहे काले , चाटुकार परायण:।।४५।।
सखीदृगिंगतक्षुब्धो , राधामानातिखिन्नधी:।
सहास राधिकाश्लेष , सुखांबुधि विलीन धी:।।४६।।
अहेतु राधा चकित , त्रपारोषणोत्सव:।
वृंदावन श्रीवीक्षार्थ , कृत राधा सह भ्रम:।।४७।।
वंशी रति ग्लह द्यूत , जित राधावरोधक:।
राधा नीवी सुसंस्पृष्टहृदयो राधिकामय:।।४८।।
राधा संबंध शून्यात्म , प्राणनामप्युपेक्षक:।
राधा संबंध गंधैक , तृणकेप्यात्म विक्रयी।।४९।।
राधा-केलि-कथानन्य , धन्यैक सु वशीकृत:।
राधा रसद् सद् धाम , वृंदारण्यश्रितात्मद:।।५०।।
।।इति श्रीप्रबोधानंद सरस्वती कृतं श्रीराधा नामांकित राधावल्लभ सत नाम संपूर्णं।।
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