नेक सो अरज - तृषित

*नेक सो अरज*

हे करुणावरुणालया श्रीप्यारीजू... मोपे तो कछु भी स्वप्न भी सम्भव नाय है स्वामिने कि किंचित भी आपको ध्यान जे किंकरी की ओर आकर्षित होय सके  ।
क्या करुँ श्रीस्वामिने कि कोई साधन, जप ,भजनाश्रय, रसिक चरणअवलंबन ,श्रीधाम शरणागति मोपे है ही नाहीं ।
आप करुणावपु सर्वेश्वरी , जिन्हें श्री सखियाँ सहचरियाँ किंकरियाँ दासियाँ रसिकआचार्यगण - ब्रजवासी और स्वयं ब्रजराज नित्य प्रति ध्यावें  हैं , जाकी महिमा माधुर्य ऐश्वर्य असीमित अपरिमित और सर्व निधि को सार सुधा विश्राम ही आपकी श्रीचरण तली निहारन है , आपकी सरसता की महिमा अवर्णनिय हैं ...कोऊ नाय छू सके,  हे सर्वाधार ...हे सम्पूर्णे ...हे अद्भुते ...किशोरी हे विपुल सौंदर्या ...सुधा निधि प्यारी जू ।
कौन साहस सँग निवेदन करुँ प्रफुल्ले श्रीप्रिया आपकी अनन्त रसिली प्रीतिवल्लरियों की निज सेवा सत्कार । अधम को आश्रय देकर कोई न्युनतम सेवा सुं हुई विरद स्फूर्त सघनदामिनी को विहरण मद झेलन हेतू अश्रुमालिका भी हिय सुं कहीं खो जाती सी ...सघन संकोच व्यापक - विस्तरण सुं सेवासँग की लज्जा को अनवरत श्रृंगारित कर स्मृति का अपहरण कर चुका है प्राणिनी जू आप सँग ।
हे सर्वविलासेश्वरी ...हे निखिलउत्सवेश्वरी, हे अनंगकेलिशिखरे , हे रसलीला कल्लोलित तरंगिणी , हे श्यामपिय-श्रृंगारिके मोरी किशोरी  सुंदरप्राणसँगिनी-प्यारी जू आप ही रसिकशेखर लालजू की रसप्राणदायिनी विलासरँग-संजीवनी , हे  बृजेन्द्रहियवासिनी श्यामा जू ... हे भावरूप-कुँजहुलसनि  श्रीकिशोरी जू आपकी महिमा अनन्त पद्माकरों से फूलित ...अनन्त कौतुकों सँग भी गायी जाये तब भी आपका सुगन्धित-उन्मादवितरण नित्य सघन अलिवृन्दों से झिलमिला कर झेलन ना होई सके है ।
हे  अनुरागझारिणी-सुरंग-गौरस्मिते  कुरँगिकामद-कटाक्षणी ...रसोवन्दे श्रीस्वामिनी जू वृन्दन-अलिवृन्दन मांहि रँग-सँग सुधि सामर्थ हुलसियो । कंचनवल्लरिके श्यामलतमाल थरनी-धरनीजू नयन मांहि नवरँग श्रृंगार हुलसन थिरक दीजो .......हे प्रेमसरोवरी - स्वप्राणर्पणे ललिताकार पियहियमालिके किशोरी जू निजहितमूर्ति - क्रीड़ाविस्फुरणी लाडवर्षिणी-श्रीलाडिली जू आप ही रसलीला-मूलनादबीजिका हो । आप ही श्रीश्यामसुंदर  सुख विलास की नितरम्भित-नयनकोर से स्फुरित करती श्रीनिकुंज लीला  धुरिका हो और आप ही वृन्दावली-निकुंज स्वरूपिणी श्रृंगारलता हो । हे पियहिय विलासिनी गजगामिनीश्रीश्यामा जू निमिष भर अनुराग रसझरण की वर्षा में भीगने का उल्लास भरा सामर्थ्य झारण करती चलो...
         ...सेवाचातकी-नितप्राणतृषा  जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । तृषित ।

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