गोपन , तृषित

*गोपन*

कह्यो जावें कि गोपन रह्वैं प्रीति । जोई कहवै , जोई सुं कहवै दोई ही गोपन न ह्वे सकें ।
साँची होती तौ बोल न सकें ...जेई तौ पक्की रेख है री परि सखी मैं न बोलूं कि मोते वासित हिय भँवर कौ गूँजन ना करवै दूँ ।
चूक गई न , तोहे जोई जोई जे मुखरता मिल रही न , वही वही न न करत उन्हीं सुं लेत चुनरी सहमवे कौ आकुलित मैं न दिखी न । प्राण जाड़ो सताए ह्वे न उघारिये न । परहिं सखी प्राण तौ वसन वत सँग रह्वे कि हमहिं वसन भरि रहिं गई ह्वे । कौ भीगी गोपिन ही समझी सकत ह्वे कि जबहिं मैं न चलूँ तौ कौन दौड़े ह्वे री । जबहिं मैं न देखूं तौ कौन निर्लज्ज नैनन कु लेईं निज हियाभरिणी कौं भरि भरि डारे री । कितने और ह्वे री जे उद्धो , हे पिय के दूत ... रोकि सकों हिय ते पीवत जे भृमर जोई राग झरण कौ । रोकि सको मोहे कि मोहे वासित पिय कौं एकहिं पाश माहिं फिसल न पड़े हमहिं दोऊ ही । मोहे थाम ही लो रे , थामी लो ..पर जे मनहर कौ जब ताईं न थामी सको मैं विवश हौई भृंगन करूं ही करूँ री ।
न उच्छ्लन होवें ह्वे सघन घन गाढ़ रस रँग की प्रीति सुधा कौ परहिं जे अति गहन मधु माहिं फँसी फँसी भीतर होत भृंगन । हाय री , आपहिं की गाढ़ता सुं प्रीति राखूं कि जे गाढ़ नवनीत माहिं धसत भृमर की भृंगन सुं नृत्यमयी होई के जेई के उडवे कौ उत्स में फ़िरणी बनी जाऊँ निज सुरँग माधुरी पे धावति । ...हाय सखी , मोरे पिय प्राण जे हिय माहिं धँसी गये री , तनिक करि न कि तनिक ठिठुरन खुली सकें हिय ते नवनीत भरी । तनिक गलन भरी भरी दौड़ो न री हित सु हित कौ उबारो न । ...न न री , लेई न जाइयो , राखियो री परहिं सखी पुनि सुरँग शीतल गाढ़ होत हिंडोल कौ झोंटा देत रहियो । ... जेई पौढ़े ख़ूबहिं पौढ़े परहिं सखी मैं न पौढ़ जाऊँ री मोरि चुनर की कोर राखियो निज कर ते ।
प्रीति प्रियतम कौ विलास सहज ह्वे सखी । बहुतहिं कहवे न होई सकें बतिया , मौसे न होवें री परहिं सखी जेई कि सुरभित प्राण सुरँग आवत लहर ही वेणु वत गूँजे ह्वे , जेई पिय प्यारे कि रोमावली वृन्द की समूची सुंगन्धन माहिं मसी खसि रह्वे । तू कहवै कि झुमो काहे तौ जे सुगन्ध झुमावै ह्वे री पुकारे निज भृमर को प्रालाप री । तू कौन कौ देख रही ह्वे री , जेई तौ धराशाईं पड़ी ह्वे जोई को तू जाने माने , जे तौ मेरो खिलौना इन्हीं कौ हौई ग्यो ह्वे री । और सखी मोहे तौ सोवत सुख रह्वे कि जे अकुला जाई ...रुदन फूटत बह्वे कि जेई झुंझुणा जाय ...जेई झुंझुणा हौई उमड़े कि पुनि नयन थकि जाएं करि ते आपहिं कौ झुंझाईं के आपहिं कौं पौढ़ाईं धाई देवत धावत मोरे प्राण , हाय री प्राण तौ दौड़ी रह्वे न बहुतहिं विलम्ब बनी गई न ...चलि न ...चलैं न ...लैं चलैं न कितनी कुँजन ते दौड़ी गए री । ( हिय ते लगाय सँग सँग विलासित रखो री जुगल जोरि एकहूँ कुक-कोक छूटी तौ गीत बिखर ही जावेगौ ) जैईं जगि कै उड़ी गई ह्वे , सँग सँग फुलनि फुलनि ते फुलनि ...समेट हि जेई पौढ़त रह्वेगे और तुझे दिखती मैं ...दिखूंगी तौ न सोई सकेगीं जोरि , तू नयन मूँद लें । तू जगी रही तौ जगी रहिं हूं वरण सैजविलास कहा ताईं फिरै । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

तुम ढूंढों मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥--(१), (१)

सुध लो मोरी......,

सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥--(1,1)

तुम ढूंढों मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

1. पाँच विकार से हांकी जाये, पाँच तत्व की ये धेरी ॥--(१), (१)

बरबस भटकी दूर कहीं मैं, चैन ना पाऊँ, अब केरी ॥--(१), (१)

ये कैसा मायाज़ाल, मैं उलझी गैया तेरी ॥--(१), (१)

सुध लो मोरी गोपाल, मैं उलझी गैया तेरी ॥

तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥--(२)

2. जमुना तट ना, नंदन वट ना, गोपी-ग्वाल कोई दिखे ॥--(१), (१)

कुसुम लता ना, तेरी छटा ना, पान-पखेरु कोई दिखे ॥--(१), (१)

अब सांझ भई घनश्याम, मैं व्याकुल गैया तेरी ॥--(१), (१)

सुध लो मोरी गोपाल, मैं व्याकुल गैया तेरी ॥

तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

3. कित पाऊँ तरुवर की छांव, जित साजै कृष्ण-कन्हैया ॥--(१), (१)

मन का ताप-श्राप भटकन का, तुम्हीं हरो हर रास रचैया ॥--(१), (१)

अब खुब निहारुँ बाट प्रभु जी, मैं खोई गैया तेरी ॥--(१), (१)

सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

बंशी के स्वर नाद से तेरो, मधुर तान से मुझे पुकारो ॥--(१), (१)

मुझे उबारो हे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

सुध लो मेरी गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

॥ तुम ढूंढो मुझे गोपाल, मैं खोई गैया तेरी ॥

खोई तो गईं हूँ पर सखी वहीं खोजि रह्वे सुं नाची रही सन्मुख री
तुम निहारत हो  ढूँढत गोपाल... खोई कौ वहीं ढूंढी सकत ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय