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Showing posts from May, 2020

कलोल कलँगिनी , संगिनी जू

*कलोल कलँगिनी* Do Not Share *सरस सिर पेंच कलंगी चंगी* *सोभा कौ सिरमौर चन्द्रिका मोर की।* *बरनी न जाइ कछू छबि नवल किशोर की।।* *सुभग माँग रंग रेख मनों अनुराग की।* *झलकत मौरी सीस सुरंग सुहाग की।...

अमनिया , तृषित

अमनिया कोमले मधुरे नवीनिमा में भीगे सुख रँग स्निग्ध-शीतल सौंदर्य-लावण्य वर्षित तरँगे पुलकनें-ठिठुरनें और शरदीय विभास-स्पंदन दिव्याद्भुत सघन सारिके सौंदर्यमालिका य...

रस और रसना , तृषित

*रस और रसना* तावत् जितेंद्रियो न स्यात् विजितान्येन्द्रियः ... सब इंद्रियों पर विजयी हो कर भी रसना नहीं जीती जा सकती है । और रसना जीतने से ही सारी इंद्रियाँ जीत ली जाती है । अप...

मन युद्ध , तृषित

*मन-युद्ध* मन-युद्ध क्यों ? ...मन की अंगुली भी पकड़ी क्यों ? मन से विरोध असम्भव है , तृषित मन वहीं है , जो तूने कहीं देखा ... पर विश्व भोगी यह ...इसका विश्व समेटो मन स्वर्ग के पुष्प की ... सुगन्...

अधिवक्ता (काव्य) तृषित

अधिवक्ता ... कैसे देखूं मैं तुम्हें आँखे तो झरोखा है , बस मुझमें अब कोई एक तो रहता नहीं ... भीतर । जब तुम्हारे लिये इस भवन से मैं निकला तो... ... तुम्हारे लिए कुछ को मैंने भीतर रखा और ... फि...

रस रीतियाँ संक्षिप्त परिचय , तृषित

Do Not Share रस रीतियाँ (अति संक्षिप्त) गौड़ीय - त्याग विशेष (विरह पान) हितरस - सेवा विशेष (सेवा दान) हरिदासी - लाड़ विशेष (निजता श्रृंगार) पुष्टि रस - श्रीकृष्णलीला पुष्टि विशेष त्याग में से...

निभृत..... । तृषित

निभृत.......... विशुद्धतम् प्रेम अवस्था सदा ही मुखरित होती है वाणी शून्यता या अभिव्यक्ति विश्राम के रूप में सरस अनुभव होकर । शुद्ध से शुद्धतम की ओर , तरल से सान्द्र की ओर गतिमान हो...

सहज उपचार , तृषित

*सहज उपचार* प्रेम पथ में प्रीति-रोग बढ़ना ही सहज उपचार स्वीकार्य है । प्रेमास्पद का सुख जितना प्रेमी का जीवन गूँथ लें , उतना वह धैर्य से साँस लें पाता है । वरण प्रेमास्पद सुखसे...