*रस और रसना* तावत् जितेंद्रियो न स्यात् विजितान्येन्द्रियः ... सब इंद्रियों पर विजयी हो कर भी रसना नहीं जीती जा सकती है । और रसना जीतने से ही सारी इंद्रियाँ जीत ली जाती है । अप...
*मन-युद्ध* मन-युद्ध क्यों ? ...मन की अंगुली भी पकड़ी क्यों ? मन से विरोध असम्भव है , तृषित मन वहीं है , जो तूने कहीं देखा ... पर विश्व भोगी यह ...इसका विश्व समेटो मन स्वर्ग के पुष्प की ... सुगन्...
अधिवक्ता ... कैसे देखूं मैं तुम्हें आँखे तो झरोखा है , बस मुझमें अब कोई एक तो रहता नहीं ... भीतर । जब तुम्हारे लिये इस भवन से मैं निकला तो... ... तुम्हारे लिए कुछ को मैंने भीतर रखा और ... फि...
Do Not Share रस रीतियाँ (अति संक्षिप्त) गौड़ीय - त्याग विशेष (विरह पान) हितरस - सेवा विशेष (सेवा दान) हरिदासी - लाड़ विशेष (निजता श्रृंगार) पुष्टि रस - श्रीकृष्णलीला पुष्टि विशेष त्याग में से...
निभृत.......... विशुद्धतम् प्रेम अवस्था सदा ही मुखरित होती है वाणी शून्यता या अभिव्यक्ति विश्राम के रूप में सरस अनुभव होकर । शुद्ध से शुद्धतम की ओर , तरल से सान्द्र की ओर गतिमान हो...
*सहज उपचार* प्रेम पथ में प्रीति-रोग बढ़ना ही सहज उपचार स्वीकार्य है । प्रेमास्पद का सुख जितना प्रेमी का जीवन गूँथ लें , उतना वह धैर्य से साँस लें पाता है । वरण प्रेमास्पद सुखसे...