कलोल कलँगिनी , संगिनी जू
*कलोल कलँगिनी*
Do Not Share
*सरस सिर पेंच कलंगी चंगी*
*सोभा कौ सिरमौर चन्द्रिका मोर की।*
*बरनी न जाइ कछू छबि नवल किशोर की।।*
*सुभग माँग रंग रेख मनों अनुराग की।*
*झलकत मौरी सीस सुरंग सुहाग की।।*
सखियन ने अद्भुत सिंगार धराह्यौ है दुल्हा दुल्हिनी को..... सुभग चँद्रिका कौ प्रतिबिम्ब सुरभित मयूर कलंगी प्रियतम मुकुट....पर अति माधुर्य रसस्कित पुलकित हृदय की सहज थिरकनों से तृषित प्रकम्पित कोमल सुमनवत् सुसज्जित ..... प्यारी जू हेतु सज रह्यौ ना....सुघर प्यारी जू सुबास सौं रसभीनो नृत्य करै है सदा.....मलय समीर कौ शीतल फुहारों से भीगो सो रह्वै......सुकोमला कौ सुकुमल सुखसिंगार पिय कौ मुकुट बनह्यौ री.....
सर्व सिंगारन कौ एकैहि सुख सिंगार सहचरि हिय ध्यावै है री....झुक-झुक आवे पिय मुकुट मेघ सम सीस सिखंडी कौ सिरताज प्यारी चरनन तें....अब जाने ना काहे ढुरक आवै पिय तरुनावतंस की सोभा अति बाढ़ि रह्वै !! तातें ताईं कोऊ और विकल्प ही शेष ना रह्वै सखी री....
मोरमुकुट भीतर सरस शीतल सुधाँसु चँद्रिका की सहज झलकन.....कुहू रैन(अमावस्या).....पिय निहार रहे प्यारी कौ मुख झुक-झुक जैसे इन्दीवर संग सोनांबुज.....तकि तकि गीली भीगी सी जकि थकि नेहनि निहोरिन करत ना अघातीं मुदिर अखियाँ.....
*नव सत सिंगारे अंग अंगनि झलकि तन की अति बढ़ी।*
*मौर मौरी सीस सो है मैंन पानिप मुख चढ़ी।।*
प्यारी चरनन तें उज्ज्वल अभिषेक आचमन कर रहे प्रियतम के सजल नयन और मयूर-चंद्रिका जैसे पुहुप चँद्रमालिका अति कोमलता से अर्पित ह्वै रही....वेपित-प्रकम्पित सहज सलोनी कलंगी का स्पर्श जैसे प्यारी जू को सुख दे रहा....करभ जंघ पर छूते मयूरपिच्छ से स्पंदित पियप्यारी जू ने सुअंक कर लिया प्रियतम को.....सगबगे से टगाटग निहारते रह गए प्रियतम ....मुखछबि प्यारी जू की.....पुनः पुनः क्षुधित तृषित .....
*जटित नगनि मनि नैन निरखि मुख निमि निमि होत उतंगी।।*
*झलमलात लावन्य ललित गति सब पर सहज सुमंगी।*
हृदय प्रसून पर सज्जित पुलकित हारसिंगार से उलझ रह गई वनमाल.....अरी....सगरे सिंगार उरझ रहे.....नयनन सौं नयन अलकलड़े री.....बेसुधि कौ बाना ओढ़े युगलबर.....सुध ही ना है कहाँ कहाँ क्या क्या उरझ रहा....अब सुरझावै कौ साहस.....ना !! कोऊ ना कर सके री....सटे सुअंक में अंग-प्रत्यंग.... चषक चखनि मदनास्त्र सौं ज्यौं सहज रसीले गर्बीले नयनबान ही ढुरका दिए सिंगारों को.....पुलके पुलके सिथिल ह्वै रहे.....चित्रलिखे से दो ही नयन.....चित्रसाल की सोभा निरख रहे.....अलकें-झलकें सहज सरस रसीली झूल रहीं नयन-हिंडोरों में .....गाढ़ालिंगन.....परस्पर मुँहाचुँही रतनाकर मयूर-चंद्रिका की सोभा से अनियारे रतनारे नयनों पर आ अटकी.....जाने कब तक सखी री....यूँ ही उरझन सी रही.....नयन सौं नयन.....उर सौं उरज....कटि सौं कटि....निहार सौं निहारन....सगरे हार कर्णिकार मल्ली अंगराग कुसुम सद्म में कटक केयूर की रसाट्ठकेलियाँ झेलते रसवृष्टि में भीगते तन्मय ह्वै ठगे से डहजहाते कीच रजत चूर्णिका से.....अहा !!
सखी री....रस बीटकनि की सुरभता आम्रदलों पर मधुरवर्षा से भीगती ललिता की क्या सोभा कहूँ ....सौंधे में सौंधी रौन चौन नर्म चौंप-चोजनि भी....सिंजित झिंकृतियाँ भी सहमी सजगता तज कोककला रंगरंगित मल्हार में डूब रहीं....
*वितत पत्र निर्तत सिखी,करत कुतुक चलि अग्र।*
*रसिक कुँवर तिहिं संग सुख,वरषत हरषि समग्र।।*
हाय !! और इस चूरा चौका की तो क्या ही रसदशा री.....सुख सर्ग उरबसी मकरिका की सहज छुअन सौं सखी री.....ढुरक गई प्यारी चरनन सौं....भावक अलि ने निहारी....ललिता जू के सीसफूल में .....सीसफूल मणि सी दमकन सगरी रैन झिलमिलाती रही....अरी !! नयन पौढ़ पौढ़ राखी करै री.....रसीली सुखचोज सिंगारती रसललिता जू....
अहा .... .... ....
*जय ललिता रस प्रनय बस,जय ललिता सुखदानि।*
*जय ललिता अंग संगिनि,जय ललिता उर पानि।।*
सगरा रसखेल साजि संभार कर रही नयन मूँद कर राखि कर रहीं पियप्यारी जू की सुअंगिनि.....तुम भी पौढ़ लो ना .....लाज कौ घूँघट ओढ़ लो री....
*....... अपरिमित लखत होत मति पंगी।।*
--- संगिनी जू
श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास जयजयश्रीवृंदावन !!
Comments
Post a Comment