अमनिया , तृषित

अमनिया

कोमले मधुरे
नवीनिमा में भीगे सुख रँग
स्निग्ध-शीतल
सौंदर्य-लावण्य वर्षित तरँगे
पुलकनें-ठिठुरनें और
शरदीय विभास-स्पंदन
दिव्याद्भुत सघन सारिके
सौंदर्यमालिका यह प्रेम ...
प्रेम तो नित्य ही
अमनिया भोग सा ...

किशोरी-दुल्हिनी-
सलज्ज-वधुता भरिते
के सुकुमार सरस सेवक
सौन्दर्य भोग
को नित रखते पाते सदा ...
...  अमनिया

निर्मल मन ने इष्ट मान
अस्पर्श रस की
वन्दना अर्चना सजा रहा
... तुम्हें
... किसी ने कभी कहीं
हृदय से स्वीकार लिया होता
तो कैसे रख पाते
तुम ...सर्वदा ही
प्राणेश्वर भोगसेवाओं
में स्वयं को ... अमनिया !

तुम ...अमनिया हो
केवल प्राणेश का
... प्रमोद आमोद
क्षीरज मोदक !
... अमनिया सुख
--- तृषित ।।।

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