मन युद्ध , तृषित
*मन-युद्ध*
मन-युद्ध क्यों ?
...मन की अंगुली भी पकड़ी क्यों ?
मन से विरोध असम्भव है , तृषित
मन वहीं है , जो तूने कहीं देखा
... पर
विश्व भोगी यह ...इसका विश्व समेटो
मन स्वर्ग के पुष्प की
... सुगन्ध नहीं लें सकता
...मन ने उसका विचार ना किया
...विचारों का थैला ,
जिस पर लिख दिया , मन !!
मन , चलता सदा बाज़ारों में
... भरने अपना थैला
और फिर भी रहता खाली
मन का यहीं थैला दे दो
... किसी व्यापक को
वह उसमें शब्द भर देगा ...
... रस भर देगा !
मन वहाँ स्वयं को
... खोया ही पायेगा
नवनीत स्पर्शों सँग
... यहाँ रस नवनीत ही नित
विषयी मन झोले का
...संग छोड़े रख सकता है
... मन छुटेगा नहीं
वह नवनीत रस सँग घुलता जायेगा !
... उसका आकार जगत ना रहेगा
वह सार्थक , निराकार हो जायेगा
और फिर जीवन ऊर्जा
यथार्थ पर होगी
...सम्भवतः तुम प्रेम तलाश पड़ो
मन से युद्ध स्वयं को ही भँग कर स्वयं से युद्ध है
मन का संग सहज स्वत्व भूल
... फटी पोटली भर रजामंद है
मन के गुब्बारे में हवा इतनी हो
दीवार-दायरे विलीन हो जाएं
... बहती समीर रह जाये
गुब्बारे की हवा निकलते ही
... गुब्बारा रहेगा ...पीड़ित सा
और फिर चाह उसे फुला देगी
गुब्बारे मन से कोई शत्रुता नहीं
ना ही इतनी प्रियता
... उसे और फुलावें !
शाश्वत जीवन वायु सँग प्रियता मन गुब्बारे को असीम कर देगी ...
...वह विलीन हो जायेगा , जीवन लहर सँग
... मनयुद्ध सम्भव नहीं ...
यह जीवन पराजय है ...
... मन हारे तब भी
मन जीते तब भी ...
मन कोमल सा व्यापक का प्यासा
हमने रूखे संसार के ही स्वाद दिए
वह समेटने लगा विषसार ही
मन एक गुब्बारा ...
...आकाश नहीं पी सकता
घट ... आकाश नहीं पी सकता
मन सीमाधीन ... वहीं भोग परत
परत पिघली तो घट यह
... आकाश में डूब सकेगा
... शाश्वत रस स्पर्श सँग
... यह घट-माटी पिघलती है
फिर अस्तित्व रहता ...
शाश्वत हेतु सेतु ...और
तुम और मन उसमें डूबे , अभिन्न ...
... मन धातु से भाव पात्र तक
मन युद्ध तो प्रबल करता है मन
लड़कर तुम उसके अस्तित्व को
...सिद्ध कर दोंगे !
तुमने कभी बिना चोंच का पक्षी देखा ...
... नहीं देखा ...ना सुना
... सो नहीं मानोगें !
तुमने तो मन भी नहीं देखा ...
... पर मान भी लिया उसे ,
तुम सदा से कोमल हो मानव !!
बस यहीं मन है ! ... प्राप्त बोध !!! एक रेखा !!!
विचारों का संकलन !!!
अपने एक-एक विचार
हटा कर देखो ...
विचार न रहा अब ...
तो मन भी ना होगा
मन विचारों से पृथक् नहीं
(... विचारों से भावों तक आओगे)
--- तृषित
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