मेरी स्वामिनी श्रीराधिके 6
इसे विस्तार से सुनकर ही समझा जा सकेगा , यहाँ सांकेतिक भाषा है
*हे सम्पूर्णने - कोटि-कोटि ब्रह्मांडो के अखिल स्वामी पद को त्यागे हुए श्रीप्रियतम को भी रसप्रेम की सम्पूर्ण मधुरता प्रदान करने वाली हो आप किशोरी...आप ही प्रेमरस महाभाव सम्पुर्ण है ।*
*हे षोडशे - अपनी मधुरिमा की षोडश कलाओं द्वारा श्रीप्रियतम रूपी चन्द्र की पूर्ण मधुरिमा हो आप । और आप ही पूर्णिमा हो मधुर रस विलासों की ।।*
*हे ललित चरणी !श्रीप्रियतम के हिय अनुराग को अपनी ललित चरणों द्वारा नित्य वर्द्धित करने वाली हो आप । आप के श्री स्वरूप लालित्य से प्रियतम में प्रेम लालित्य उच्छ्लन है ।*
*हे नवल तरुणी ! अपने नित्य नव तरुण रूप माधुर्य द्वारा श्रीप्रियतम की सभी रस लालसाओं की पूर्ति करने वाली हो आप । आप का कलेवर , यह रूप नवीन प्रेम भरे भावों का समुद्र होकर भी नित्य नवीन मधुरताओं का उच्छ्लन है*
*हे रोमांच कारिणी ! अपने रूप, लावण्य, माधुर्य द्वारा श्रीप्रियतम हृदय को रोमांच प्रदान करने वाली हो आप प्यारी श्रीप्रिये, श्रीप्रियतम की प्रेममयी सहज पुलकन हो आप*
*हे द्रवित चित्ते ! श्रीप्रियतम की व्याकुलता-आद्रता और रस तृषा की उछालों के अनुभव से नित्य अपना ही नहीं और सभी सँग परिकरियों का ही नहीं , अपितु समस्त भुवनों में आप ही तरल रसवत शीतल आदृता हो हृदय की*
*हे अधीश्वरी - कोटिन ब्रह्मांड नायक को भी अपनी भृकुटि मात्र द्वारा ही अधीन करने वाली हो आप प्रिये।*
*हे अधिष्ठात्री ! श्रीप्रियतम के विलास हेतु सकल ललित कलाओं की एकमात्र अधिष्ठात्री हो आप श्री ।*
*हे गोपिशिरोमणी ! श्रीप्रियतम प्रेम की प्रेयसी सभी रस रीतियों सुगोप्य प्रीति हो सो गोपांगनाओं की शिरोमणी हो आप श्रीप्रिये*
*हे गोपनन्दिनी ! प्रेम रस रँग की मधुर सुकुमार महाभाव सुकन्या कौमार्या श्रीप्रिया प्रियतम के आस्वाद्य रस की कोमलता हो हे नन्दिनी । श्रीप्रियतम सुख हेतु प्रकट रस श्रृंगारक गोपीजनों के शिखर श्रीवृषभानु नामक गोप की लाडली हृदयमणि कन्या हो आप श्रीप्रिया*
*हे वृन्दाधीश्वरी ! अपनी मधुरिमा, करुणा, स्नेह, माधुर्य द्वारा सम्पूर्ण वृन्दावन की नित्य अधीश्वरी हो आप श्री*
*हे गुणवती ! हे गुण निधि निभृत सुखों की रसिली प्रिया , श्रीप्रियतम सेवा सुखार्थ सकल गुणों को नित्य वसन वत नव-नव धारण करने वाली हो आप श्रीप्रिये*
*हे कारुण्यशालिनी !श्रीप्रियतम सुख हेतु अतिशय कोमल एवं करुणा पूर्ण स्वभाव की सघन आच्छादन सुधा हो ...आप श्रीप्रिये , नवघन की सघनिमा हो कारुण्ये*
*हे स्निग्धे ! मधुर रस में नित्य भीगे रसीले मोर प्रियतम पर सरस् सघन प्रेम रूपी चिकने कोमल रस की नित्य स्निग्ध स्नेहित वर्षा हो आप रसिली स्निग्धे ।*
*हे प्रफुल्ले ! श्रीप्रियतम हिय पराग की नित्य प्रेम प्रफुल्लित प्रेमरस राग वल्लरी हो नित्य खिलती और झूमती ...आप श्री प्रफुल्लिनी फूलनी जू*
*हे इन्दीवरे ! श्रीप्रियतम नीलकमल की माधुर्य कमलिनी हो आप नील नयने*
*हे विद्युतमालिके !श्यामल घन प्रियतम सँग आलिंगित विद्युत समान उज्ज्वल वल्लरी हो , हे दामिनी की अनन्त चपल तरंगों में भरी श्रीप्रिये विद्युतमालिके ।*
*हे कृष्ण पटाम्बरसुशोभिते ! श्रीकृष्ण रूपी प्रेम वस्त्र-वसन श्रृंगार को धारण करने से शोभायमान हो आप श्री*
*हे गुणरत्ने ! श्रीप्रियतम के अभिन्न रत्न रूपी सभी गुणों को जीवन सुख देने वाली गुणमणि-गुणमहिम्ने हो आप*
*हे श्यामले ! श्यामल प्रियतम के सँग अभिन्ना गौर स्वरूपणी होकर भी श्यामल रस रँग निभृत विलासों की श्यामलता उड़ेलने वाली हो आप श्रीश्यामा*
*हे ऊर्जेश्वरी ! नित्य गहन दिव्य विलासों के उन्मादित कौतुकों सँग उत्ताल तरंगित झूमती प्रफुल्लिनी हो आप श्रीप्रिया*
*हे श्रेष्ठा ! नित्य निभृत सघन गहन सुगोप्य विलास सुख उड़ेलने वाली अद्भुत अलबेली श्रेष्ठा हो जो सहज सरस नवीनतम उत्सव में श्रीविपिन बिहारी को निकुँज-उत्सवित रख पाती हो*
*हे वरे ! माधुर्य सार रसराज श्रीप्रियतम का हरण वरण नित्य नवीन सुख विलासों से सहजने वाली हो आप श्रीप्रिया ..वधु हो सहज नवेली सरस रसिक दूल्हा वर की दुल्हिनी जू*
*हे कृष्ण नामलोभिनी ! श्रीप्राण सुन्दर प्रियतम श्यामघन किशोर के रसीले रँगीले छबीले कौतुकों से सने नामों की ललित माधुरियों में नित्य किशोरी सहज प्रीति बसन्त से लज्जित होकर भी केवल सँग करती हो , प्राणधन की रस नामावलियों का*
*हे अमरकोषिणी ! सम्पूर्ण माधुर्य, रूप , लावण्य, करुणमधुरा , छबि शोभा , लीला विलासिनी रूपी अमृत सिन्धु की रस सुधा स्वामिनी जू , हे श्रीप्रिया आप अमृतकोषिणी है*
*हे सम्मोहने ! अपने रसीले कोककला भरे कौतुकों सँग , सौंदर्य पूरित रूप और स्वभावों सँग अद्भुत सम्मोहन रचने वाली सम्मोहिनी हो आप श्रीप्रिये*
*हे घनीभूते ! सघन-गहन रस रँग की रैन-सैन में घनश्याम को घनीभूत सुख देने वाली ...रसिली उल्लासिनी गहन प्रेमालापों की तरँगों घनीभूत रस भर देने वाली गहनतम विलास रजनी सुगन्धा हो आप*
*हे सुष्मे ! श्रीवृन्दावन प्रेम निकुँज मन्दिरों की ललित मधुर सरस नित्य बिहारिणी श्रीप्रिया ही श्रीविपिन के विलासों की सचल प्राण सुष्मा शोभा माधुरी है*
*हे भुवनमोहिनी ! स्वामिनी का निकुँज भुवन सहज प्रेम के रसीले विलासों से ऐसा सेवामय सुख है श्रीप्रियतम का कि उन्हें अपने समस्त भुवन का चिंतन छोड़ कर श्रीवृन्दावनबिहारी होने का उत्स ही उच्छलित रहता है ...अहा हमारी स्वामिनी श्रीप्रिया का रँग-रस ...जयजयसर्वेश्वर भुवन मोहन की सरसमोहिनी जू*
*हे सौंदर्यवशिकर्णी ! रसिक प्रियतम का सार सुख सौंदर्य ...ऐसा सौंदर्य जो नित्य नव-नवीन उत्सवों सँग और मधुरतम-मधुर होते सौंदर्यपान के भृमर प्रियतम को वशीभूत सँग रख नवेली वधुताओं मधुरताओं में खिलती-फूलती प्रफुल्ल सुंदर कुमुदिनी जू*
ऐसे अनन्तकोटि मधुर मधुर नामों को धारण करने वाली मेरी स्वामिनी श्रीराधिके की जय हो ! जय हो !
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