टपकती पुहुपाई । युगल तृषित

टपकती पुहुपाई 

भाव एक पुहुप (फूल) है । जिसे कई फूलों (भावों) सँग मिलकर कुँज सजानी है क्योंकि कुँज एक फूल से नहीं । बहुत से फूलों अर्थात् भावों के समूह से बनी होती है । जिनका भाव सिद्ध हो गया है वह भीतर से फूल से रह गए है और फूलों के महल में , फूलों  को पहनकर , फूलों की सेज पर जो दो फूल ... कोमल फूलों का सुख सजा रहे हो वह मधु पीने वाली अलियाँ इन शीतल फूलों के चिंतन से यूँ कम्पित रह जाती जैसे बिना पीवें ही रसना पर फैन-मैन हिमराग या पयोहिम होकर शीतल शर्बत टपक रहा हो । शीतल पेय शीतकाल में पीने पर जो दशा बनती वह ही दशा और शीतल होकर श्रीयुगल सँग कर सकती । साधक दशाओं को मेरा सदा निवेदन रहा है कि ग्रीष्म में ग्रीष्म को झेलें और शीतकाल में शीतलता को बढ़ाकर पीवें । तब ही वह शीतलता ऊष्ण ऋतु में कम्पित करेंगी । और जो सहज सेविका है वह ऊष्ण ऋतुओं में शीतल सुख सहजता से दे पावेगी , अपना पृथक् राग नहीं रोवेगी क्योंकि सुख देने के चिंतन से अतिव शीतलता में तनिक ऊष्ण उत्सव और ऊष्ण वेला में तनिक शीतल उत्सव और आगे जल केलि या नौका विहार भी भीतर सहज उत्सवित होगा । देह हो या कोई इन्द्रिय उसका सँग हो केवल निकुँज रस वर्द्धन हेतु । जो भी लता इस ऊष्ण वेला में शीतल फल देती वह शीतकाल के ठिठुरन को झेलकर रस फल कर ही देती , वह सहज शरद मन्जरियाँ ही है *निकुँज का रस फूल होकर ही पिया जा सकता क्योंकि श्रीपियप्यारी स्वयं ही फूलों के आराध्य सुभग फूल सरकार है*

-- युगल तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । अँगराग परिमल आदि भाव सुनकर आप अनुभव करें होगें कि अब जो श्रीयुगल आप छुओगे वह स्थूल पदार्थो से नहीं अपितु गीले मधुररँग रस अनुरागों से सजे होगें । 

जैसे लोक में आईसक्रीम (पयोहिम) होती उससे भी कोमल रँगीले मधुर शीतल । (यह हमने समझाने को कहा, भाव में हम इसके लिए मैन या अँगराग शब्द प्रयोग किये और भी शब्द जैसे पराग - गुलाल -  हिमराग - नवनीत - मधु - पयोहिम । लौकिक सौंदर्य प्रसाधन जितने स्वयं कोमल या द्रवित होते उतना ही कोमल द्रवित रस देते और मूल सौंदर्य प्रसाधन फल-फूल से ही प्राप्त होते अर्थात् जो भी सुन्दर है वह खिलती हुई फूल है । सो हृदय को फूल कर नित्य फूलते पियप्यारी का विलास निहारते हुए पद्म को स्थल पद्म (पाटल-गुलाब) और गुलाब को आगें पिघलते हुए मोगरा जूही होकर भी निहारने लगोगे अर्थात् पियप्यारी में सभी निकुँज का सार है जिसे वह मिलित रँगोत्सव या क्रमशः कैसे भी खेल सकते है । युगल तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । 

भाव साधक एक बार नहीं अपितु नित्य ही नव समर्पण में रहकर भीतर से और मधुर गलित होते हुए और ललित सुभग रीतियों का उत्सव पिलाने को आन्दोलित होकर एक-एक स्वेद बिन्दु का उत्सव अनुभव कर कम्पित होते हुए रसीले युगल का रस बिन्दु हम अलियाँ भर रही है रसिला माधुर्य
अर्थात् शर्बत के शीतल श्रीयुगल स्पर्श होगें भीतर ...अगर हम भावसेवाओं को शीतल शर्बत बनाने की लालसा भी किये है ...

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