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Showing posts from January, 2015

उत्कंठा UTKANTHA

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इनका जो है सब सुन्दर है

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हाल

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ओ सजन !!

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असर

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बेख़ुदी ही मज़ेदार है होकर उनका जाने है हम ऐ यादों सिसकियाँ ही वफ़ादार है युं दरवाजे पर ख़ामोश है हम फ़ुरसत नहीं अब ना जाने कब द़िल्लगी करलें सनम युं कुछ करते नहीं बेप़नाह ...

yu hi kuch

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है ना यें सुन्दर . जी ये इतने सुन्दर है कि हर बार की कल्पना झुठी लगती है सुन्दर है तो नज़र तो उतारेंगें ग़र हमारे है ... वरना सौन्दर्य किसी का देख हम हर्षित कम होते है खिजते ज्याद...

मैं इक शायर

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वफ़ा हुई नहीं और मुहब्बत कर ना सका

रास क्या है ?

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इस संसार में सब व्यक्त हो सकता है कुछ के अलावा वो है भगवान और उनकी लीलायें ... भक्ति का विशुद्ध रुप है परा - भक्ति ( प्रेमाभक्ति ) यें अप्राकृत है , इसकी अनुभुति भगवत् इच्छा से ही स...

ना छोडियो मोहना ...

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आप इतने सुन्दर हो ना ... आपको किसी भी विधि से चाहने में सदा असमर्थ रहा ना ही आपके हेतु ... और तब भी आप मेरे अकथन को भी साधते रहते है ... जय जय ... कुछ अति लघु जीव के भी मन की रखना .. अशरण को भी  ...

भगवत्कृपा

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भक्ति के लिये एक शब्द है ... केवल   * भगवत्कृपा* ही मूल है .वहीं औषधी है . वहीं मार्ग वहीं मंज़िल ... वो चाहे तो हूर को नूर कर दें | ... उनको वहीं चाहते है ... जिसे वो चाहे , वहीं दर्शन वहीं प्रेम - मार्ग पर चल पाते है ... वरन् भक्त के जीवन के कष्ट सामान्य जीवन के लिये दुष्कर ही है … सामान्य जन उन्हें नहीं सह सकते पर भक्त का ध्यान कष्ट पर ना हो उनके चरणारविन्द पर होता है सो ख़्याल ही नहीं आता कि दु: ख भी है क्या ? और यें सब होता उनकी कृपा से है ... सभी उनसे मिलना चाहते है पर वो किससे मिलेंगें यें वही तय करते है | ... हाँ मार्ग प्रेम का होता है शुरुआत सत्संग से पर होता सब उनकी ही कृपा से है ... राम कृपा बिन सुलभ न सोई !! सत्यजीत

स्मरण कैसे करें

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राधा शरण दास > ‎भक्त और भगवान *भगवान् को स्मरण कैसे करें? *ऐसे करो, जैसे प्यास से व्याकुल मनुष्य जल का स्मरण करता है | * ऐसे करो, जैसे भूख से सताया हुआ मनुष्य भोजन का स्मरण करता है | *...

तृषित - पंछी का प्रेम निवेदन

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तृषा , आमतौर पर देखा जाये तो मैंनें उसे जन्म दिया | नाम दिया | पर वहीं श्री जु कृपा स्वरूप नन्हीं तृषा { त्रिशा } है जिन्होंने नया उन्माद भर दिया | मैं इस योग्य नहीं कि उन्हें अपना ...

Guru kumhar shishya kumbh

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गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट आत्मिक प्रगति के लिए गुरु की सहायता आवश्यक है। इसके बिना आत्मकल्याण का द्वार खुलता नहीं। जिस सद्गुरु का माहात्म्य वर्णन शास्...