Posts
Showing posts from January, 2015
भगवत्कृपा
- Get link
- X
- Other Apps
भक्ति के लिये एक शब्द है ... केवल * भगवत्कृपा* ही मूल है .वहीं औषधी है . वहीं मार्ग वहीं मंज़िल ... वो चाहे तो हूर को नूर कर दें | ... उनको वहीं चाहते है ... जिसे वो चाहे , वहीं दर्शन वहीं प्रेम - मार्ग पर चल पाते है ... वरन् भक्त के जीवन के कष्ट सामान्य जीवन के लिये दुष्कर ही है … सामान्य जन उन्हें नहीं सह सकते पर भक्त का ध्यान कष्ट पर ना हो उनके चरणारविन्द पर होता है सो ख़्याल ही नहीं आता कि दु: ख भी है क्या ? और यें सब होता उनकी कृपा से है ... सभी उनसे मिलना चाहते है पर वो किससे मिलेंगें यें वही तय करते है | ... हाँ मार्ग प्रेम का होता है शुरुआत सत्संग से पर होता सब उनकी ही कृपा से है ... राम कृपा बिन सुलभ न सोई !! सत्यजीत