कृष्ण तेरी यादों में ... krishna hi krishna

अब मेरी गली की ओर ...
जहाँ कुछ ना बन पा रहा हो 
जहाँ कोई इतना सुन्दर 
इतना कोमल हो कि देखते 
भी ना बने ... 
जिसकी कान्ति की कल्पना 
मात्र नेत्रों को चकाचौंध कर 
भीगों दें ...  जिसकी कृपा 
हेतु ब्रह्मा जी को तप करना पडें | जो अह्लादित कर नटराज को झुमा दें | जो 
परम् होकर केवल भक्तजन सुखाय भाव से 
झुला झुलें | सब को तृप्त करने वाले वो अकल्पनिय 
अथाह सागर से हरिदास जी 
को कहें पेट दर्द है ...
और सहसा दास जी आंवलें की चटनी चटाने लगे ...
जिसकी प्रथम प्रिया बन 
यमुना झुम उठी ...
कालिन्दी के वर्ण को अंगीकार
करने वाले ... जिसके हाथ 
की मुरली विचारें .... कही कृष्ण के ना छुने जैसे सुकोमल होंठों 
को छुने से पहले ही मैं बजना शुरु कर दूँ तो उचित रहे ...कहीं उन्हें कष्ट ना हो  ...
जिनका नाम - सेवा योग्य 
होने की कल्पना ही आनन्दित करदें ... वें भक्तहृदय वासी ... व्यक्त होकर पूर्ण  अव्यक्त हेतु .... मनमोहन भगवान होकर कोमल कर उठा आलिंगन को बुलाते प्रीतम हेतु । 
गोपाल हेतु !

कृष्णा तेरी यादों में मैं
कुछ पागल सी हो गयी हूँ
खुद ही इक पल हँसती हूँ
और दूजे ही पल रो देती हूँ
जैसे ही यह तेरी यादों का तूफ़ान
गहरा जाता हैं
सुध बुध अपनी गवा बैठती हूँ
तुमसे बात करने को मचल जाती हूँ
तेरे दरस पाने को इधर उधर भागती हूँ
जब तू श्याम दरस दिखता नहीं
तो तेरी तस्वीरो से बातें करती हूँ
तुझे तेरी ही छवि में निहारती हूँ
तुझे ही याद करती हूँ
मगर यह मेरी सूक्ष्मता 
इसमें कहाँ तू समा पाता हैं
इसीलिए मेरा दिल
जो तेरा था और तेरा ही हैं
तुम्हे ही अपना हाल-ए-बयाँ कर जाता हैं
कृष्णा तेरी यादों में मैं
कुछ पागल सी हो गयी हूँ
सुध बुध अपनी खो गयी हूँ
तृषित

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