संदेह और अहंकार
स्वाभाविक सत्य है ... सन्देह और अहंकार का होना |
जहाँ देखिये वहाँ ...
संदेह - संदेह हर किसी को है | हर किसी से ...
परमात्मा के होने पर भी | भीतर - बाहर ,
विग्रह में होने पर तक | संदेह इतना आम है कि
हर कोई दोषी भांति जी
रहा है | व़क्त बेव़क्त अपने
होने का कागज़ी सबूत साथ
रखना होता है अर्थात् हम
सन्देह के घेरे में है | और
यें सब जानते भी है ...
सामाजिक जीवन का संदेह
सुरक्षा के नाम पर टाला जा
सकता है पर व्यक्तिगत्त संदेह ... |
बीते जीवन में जब कोई
नया मानव जुडा उसने
संदेह तो किया ही ...
क्या तुम कर पाओगें ?
पारिवारिक जीवन में भी
संदेह हिलोरे लेता ही रहता
है | मैं कौन हूँ हर नये जुडे
को जानना है | कसौटी
पर परीक्षा बार - बार |
उपाय है ... या तो नया
सम्पर्क बन्द जो असामाजिक
कारण है | या वो जो आम है
... एक ऐसा मुक़ाम की संदेह
व्यक्त ही ना हो | भीतर घुट जाये |
पद ... कोई ओदा | सब यहीं करते
है आम है | पर मेरे जैसे कोई तीसरा
रास्ता लेते है वो बाद कि बात है ...
फिलहाल आम बात संदेह जड़े
बना चुका है | हटाना कठिन है
... उदाहरण के लिये वर्तमान में
मेरे परिचितों को संदेह है कि
क्या वास्तव में कुछ कर रहा है
, सही राह पर है या ढोंग कर
रहा है | वैसे जो भी हो एक बात
है कोई ऐसा भी है जिसे रती भर
संदेह नहीं ... कोई अवस्था , कोई
कुचाल , कोई ढोंग के बिना वो
जिस हद तक चाहो मिलने को तैयार
है ...
खैर , आपने विशेष जगह सुरक्षा की
मशीन को पार किया होगा | वैसे ही
अब संदेह है ... पहले टेस्ट फिर रिश्ता ,
यहाँ भी मैं चुक गया बहुत से अपरिचित
मेरे जीवन में रंग - प्रेम सजा रहे है | ...
जो मुझे जान कर छुना चाहा उनसे तो
मैं मुक्त होना चाहता हूँ ... वहाँ रस नहीं
बन पाता |
हद तो यें है कि हम अपना संदेह सर्द
रात में भीख माँगते बच्चों तक पर
व्यक्त कर देते है | ...
शायद भीख माँगना शौक़ है ...
आईये अहंकार की ओर चलें |
अहंकार - अपने होने का एहसास !
वो भी ऐसा कि दूसरा ना दिखे ...
सब छुटे बस एक बार मेरा होना
घोषित हो जाये |
मैं का बोध | उसको जान उसको
सजाकर दिखाना ...
अस्वीकृति के नारे जो बचपन से
उठे ... चलिये एक रहस्य बताता
हूँ ... मैं महा डरपोक हूँ ... इन दिनों
ना जाने वो डर कहाँ गया ?
थोडा धीरे हँसियेगा ... कॉलेज में
रेगुलर नहीं रहा प्राईवेट पढा
उनमें एक कारण था | अहंकार |
मेरे होने का एहसास बनेगा | ...
हालांकि यें छोडता नहीं अब भी
है पर जब कभी ईश्वर के पल - पल
किये जाने वाले करम याद होते है ...
फुर हो जाता है जो बचता है वो पिघल
रो पडता है | ...
वस्तुत: यें बडी भयानक चीज है | काम
, क्रोध आदि का कारण | ईश्वर से दूरी |
उनकी कृपा से दूरी | उनके आनन्द से
दूरी का कारण |
बीज अहंकार है फटा तो वृक्ष प्रेम रूप
में निखरा | और रस मिला प्रेम की ऊचाँई
छू गया तो भक्ति रूप में फल आये ...
पुष्प आयें | ...
और अहंकार के विषय में सब जानते है
मानते है | पर जब तक फुर्र ना हो डरें भी |
अहंकार को यहीं रोक आगे बढते है ...
ना संदेह हटता है ना अहंकार | अब करना
क्या है | यहीं सवाल था मेरा | कृपा हुई |
जवाब आया | दोनों को व्यस्त कर दो ...
पर कैसे ? संदेह को जो तुम को छोड
सब ओर मंडरा रहा है ... उसे ख़ुद पर ...
अहंकार पर लगा दो |
संदेह को अहंकार पर लगा दो ...
सवाल करो ख़ुद पर .. ख़ुद से |
अपने हर काम हर सोच पर संदेह |
जब भी कुछ बूरा कहो ख़ुद से
तिसमारखाँ साब , कोई काम तो ढंग
से करो | कुछ अच्छा हो तो कहो यें
कौन किया तुम तो नहीं कर सकते
तुम कुछ करने लायक नहीं तो यें कैसे
किया ... ?? पता चलेगा मैं फुर्र कोई
और सब कर रहा है | और सन्दिग्ध हो
अपने पर | संदेह को हिलाओ मत ...
मैं के आगे ज़मा दो | ... दोनों को बाँध
दो जैसे मैं कुछ करें संदेह हाज़िर ...
ख़ुद को हारता देख बडा आनन्द मिलेगा |
अपने अलावा कोई भी अहंकार नहीं मिटा
सकता | साधन मिल जायेंगें | गुरु मिल जाते
है क्रिया मिल जाती है पर क्रिया का सम्पादन
स्वयं करना होता है | कोई किसी के भीतर
जाकर साफ नहीं कर सकता | ख़ुद जाना होगा
... बक़वास लगेगा तो भी | मन भागेगा | बाँधना
पडेगा | पर हो जायेगा ... ना हो तो श्री युगल
सरकार की तरफ झाँक लेना ... वो हँसेंगें बस
हो जायेगा | ...
साधकों को भी यें अनिवार्य है ... अकर्ता और
मौन के रास्ते की प्रारम्भिक तैयारी मात्र है यें ...
जय जय श्री राधे | सत्यजीत |
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