yu hi kuch
है ना यें सुन्दर .
जी ये इतने सुन्दर है कि हर
बार की कल्पना झुठी लगती है
सुन्दर है तो नज़र तो उतारेंगें
ग़र हमारे है ... वरना सौन्दर्य किसी
का देख हम हर्षित कम होते है
खिजते ज्यादा है ...
यें तो मानते ख़ुद को हमारा
वरना चाहे जो कहाँ करने देते
सो इस बार जब नज़र उतारें
यानि आरति करें ...
आरती यानी नज़र उतारना ही है ...
उसमें भी हम नज़र के भाव ना
ला पाते ... हमें मांगने की ऐसी आदत है जो सोच भी नहीं सकते
मान लिजिये मेरे घर माँ या कोई
नज़र उतारे तो मांगेंगे तो थोडे ...
पर इनकी आरती के वक्त जब नच़र उतारते तब भी मांगते ही है .
आरती के पद भी ऐसे ही है ..
आप स्तुति से भी नज़र उतार सकते
है ... ना मांगें ... वो स्वयं अकारण
करुणावरुणा लय है ना मांगें ...
घर का सदस्य बनाईये इन्हें .
विचार करिये बचपन में बार बार की
जिद्द से पिता भी खिज जाते थे ...
फिर हम उन्हें ना कह माँ को कहते ...
अब सोचियें पिता से ज्यादा तो इनसे
चाहा होगा आपने ... हर पल ...
जब सामने यें आये . सोचियें यें कभी खिजें ... नाराज़ हुयें ... होते तो आप सामने ना जाते . हमारे पाप ऐसे है
कि हम बहुतों से नज़र नहीं मिलाते
पर इनसे मिलाते है कारण हमारा अहम् नहीं इनकी करुणा है ...
यें हद से ज्यादा कोमल है ... इतने कि
फुल होते तो भँवरे छुते भी ना ...
जल होते तो मछली मर जाती हिलाती ना ...
पर यें सब कुछ है ... हमारे लिये ढल गये ...
तो कह रहा था जैसे ही यें सामने मांगना शुरु . क्युं जी इतनी
भीख क्युं . गौर से देखियें सवेरे से रात
और रात की नींद तक सब पहले ही इनका है . वरन् नींद बिस्तर से होती
तो सडक पर देखियें ...
रात की ज़मा देने वाली शीत में सरोवर की मछली सवेरे जीवित मिलेगी उस
ठंडे जल में जिसे हम छु भी ना सकें .
फिर आरती लेते व़क्त आप सब को
ज़रा कह दो कि भई कल्याण नहीं
होगा इनकी नज़र तुम्हें लगेगी ...
देखो कितने लोग लेते है ...
जैसे घर में माँ का भाव होता है
वारने का ... उनकी नज़र अपने पर लेना ... आप दिमाग लगाये तो
नज़र लगती ही नहीं यें भगवान है
सो वार लें कुछ नहीं होगा ...
दिल से सोचें तो आरती में ही आप रो
देंगें सब नाटक होगा ही नहीं ...
यें खडे होगें आप आरती करेंगें ...
फिर अपने पर लेंगें ... अब आप पर असर होगा ... क्युं आपने उन्हें
प्रभु ना चाहा ... सो वो आपके कान्हा
हो लिये ... बांधा बंध गये ... अब जब तक आप का प्रेम है बंधे रहेंगें ... सो वारने का असर होगा
पर वो असर ऐसा होगा आप उन्हें
देख रो दोगें ... उनका देना नहीं छुटता ... असर होगा हर रोम - रोम पर. उसे जी कर स्वयं देंखें मैं लिख नहीं रहा ..
गर यें पागलपन है तो हर बार होता है
जहाँ जहाँ आरती होती है ...
वरना केवल एक कार्य ही होता है बस !!
गोपी भाव का ही सुक्ष्म रुप है
आरती ... प्रेम निवेदन |
वरन् वें तो नज़र के बस में कहाँ
बच्चा भी जानता है . प्रेमातुर के लिये
वें प्रभु नहीं वरन् प्रेमी की एक मात्र
सम्पति है सो क्युं ना उतारे आरती ...
हाँ हम ढोंग कर सकते है ...
है ना ... नज़र उतारने के लिये
लगानी भी होती है ...यें प्रेमी के बस की बात है ... जो खट्टी छाछ
पीने पर लाठी दें मारें ... ...
किसी की सरलता की हद नहीं तो वो भगवान है
वो सरल ना होते तो ना जाने कितने और भगवान
होते ...
हाँ किसी के नसिब में जै जै की सेवा है
तो आप कुछ मांग ही नहीं सकते ...
सेवा मिलने पर कुछ ना चाहे ...
वो फाईनल स्टेज है उनके देने की
इस पर आगे बात करेंगें ... श्री राधे !!
कुछ कष्ट हुआ तो क्षमा
- सत्यजीत "तृषित"
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