पाखंड और अध्यात्म

पाखंड जब जब पिटा है | लोगों ने अध्यात्म
को बिमार माना है |
स्वयं को जानना और सार्वभौमिक परमात्मा
का सचेत दर्शन करना ...
आत्मा और शरीर के भेद को समझकर
बौद्धिक स्तर से उठ जाना ...

... मार्डन कल्चर में बकवास चीज है यें ...
सामान्य लोग जिस चीज
को जानते है वह पाखंड है ...
उसका ईश्वर से दूर दूर
तक नाता नहीं ...

ईश्वर का सम्बन्ध अध्यात्म से
है |
अध्यात्म और पाखंड में
बहुत अंतर है |
सच है जब तक डर है पाखंड होगा |
डर कर कोई परमात्मा
नहीं पा सकता | परमात्मा
प्रेम - करुणा - चेतना -
आनन्द का विषय है |
दु:खी को नहीं मिल सकते
वह नहीं जुड पायेगा ...
भौतिक दु:ख का उनके पास कोई उत्तर नहीं ...
अभिमन्यु के मामा थे श्री
कृष्ण ... विधि के विधान में
वह ख़ुद भी बाधा नहीं बनते |
रोक सकते थे .. अभिमन्यु
के साथ चक्रव्युह के अन्याय को ...
पर जो होना था हुआ | जिन्होंने
अन्याय किया वह भी उनके
लिये अपने ही थे | ...
अगर परमात्मा के प्रति आकर्षण
हो तो ही वह आपके हेतु रोचक
होंगें | तब ही समझ पायेंगें वो क्या है ?
उसके हेतु अपने आप पर
रोज विचार करना होगा ...
मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ?
इसका उत्तर केवल आपके पास ही है ...

संसार में कोई किसी
के दु:ख नहीं मिटा सकता |
सिवाय सत् कर्म |
कोई छल सकता है बस ...
दु:ख मानसिक अवस्था है
... कोई रबडी खाते - खाते दु:खी
है तो कोई कई दिन की भुख में खुश !!
मैं ऐसी माँ को जानता हूँ
जो अपने पुत्र के मरने पर
भी शोक नहीं करेगी | ...
हाँ पर उसे उस हाल में मस्त
देख कर भी दु:खी लोग
दु:खी होगें | उन्हें दु:ख चाहिये
भले खरीदना पडे |
जैसे .. नशिली चीजें |
अब जो आपके ना मिटने
वाले दु:ख को मिटा दें वो
भगवान होगा | ...
हमारा बनाया भगवान !!
उसके जीते जी या मरने पर
आप उसे ही पुजने लगोगें |
जैसे - निर्मल बाबा, ब्रह्मकुमारीज ,
निरंकारी , जयगुरु देव ||
हर इन्सान देवता होना चाहता है |
ऐसे लोग चाहता है जो उसके पैरों
में गिरे ... रोये ताकि वह उन पर
मेहरबान हो सकें |
आत्मा परमात्मा है पर वो अवस्था
पाना सहज नहीं ...
स्वयं को ईश्वर मान ही आप कई
गाँव - ढाणी - कस्बे में देख सकते
है झुमते - झुमाते देवी देवताओं को
जो दावा भी करते है कि वह आपका
भला तो नहीं पर ना मानने पर बुरा तो
कर ही सकते है ... समाज में फैले
डर को पकड चुके है वो ... डरा रहे है
... कि मानों मुझे वरना भुक्तों ...
ऐसे ही भीड बढाई है उन्होंने |
पद पाकर - धन पाकर - कोई सिद्धि
पाकर कोई भगवान को पा नहीं रहा
बल्कि माहौल बना रहा है ... मुझमें जो
है वो किसी में नहीं ... यें अहंकार है ...
उस विधाता का शत्रु , जिसने कई ब्रह्माड
रचे संसार रचा ... आपको और जहाँ तक
कोई देख सके वो रचा ...
कण - कण में परमात्मा है सबको पता है ...
फिर लोग कहते है मच्छर में मक्खी में भी
, जी हाँ | अब लगता है भगवान के विराट
स्वरुप को तो नहीं इस लघु को तो मैं हरा ही
सकता हूँ ...
एक चीज मैंनें बचपन से देखी है कि जब कोई
अबोध सा बालक गिर जाये या चोट लग जायें
सब कहेंगें चींटी मर गई अरे अरे चींटी मर गई
खुश होंगें ... बच्चा सोचेंगा यें कोई बहुत ही
बढिया काम किया उसने | कि सब उसके दर्द को
भुलकर चींटीं मरने से खुश है | यानी चींटीं को मारना
जरुरी है ... यें नेक काम है | किसी की मौत
आपका दर्द भुला दें यें सुत्र सब जानते है
... घर से ही सिखा है | कुचल - कुचल कर आगे
बढना | ... यहीं से मैं का जन्म होता है
ख़ुद को बना औरों को मिटाने का |
सबको पता है ग़लत सही का |
किसी को कैसा भी कष्ट देना पाप है
सब जानते है | ... सो डर है ...
सब जानते है कि वो परमात्मा जिसने
जीवाणु से मुझ तक सब बनाया ...
उसको मैंनें कष्ट दिया | अब नयें
भगवान बनते है ... जो आपसे हो
जो भेद कर सके , डरा सके , लुट
सके , चिल्ला सके ...
यें सब चुभ रहा होगा है ना ...
थोडा और ... युं तो जानवर बात
नहीं करते पर मैं कहता हूँ कोई
उनसे बात ही नहीं करना चाहता ...
डिस्कवरी पर कई लोग मिलेंगें
जिनको जानवर समझते है |
एक हाथी पर अंकुश चुभाते
देख मैंनें कोशिश की उससे
नज़र मिलाऊँ कि यें क्या है
तुम इतने बडे हो सह कैसे रहे
हो ... वो नज़र चुराता रहा |
जब नज़र मिली तो लगा जैसे
कह रहा हो एक पल का काम
है इसे मिटाना पर मैं जानवर हूँ
इन्सान नहीं इसे मारकर जो
करुणा निर्मलता बन पडी है
पल भर में टुट जायेगी |
क्रोध - अहंकार से मेरी भीतरी
शान्ति मिट जायेगी | मार कर
मैं हार जाऊगाँ ...
मैं रो दिया ...
काश इन्सान , अपनी बनावट उतार
पाता |
P.K . ने बहुतों को जला दिया ...
सनातन धर्म कि चिंता ना करें
वह सनातन है वह था रहेगा उसका
सम्बन्ध ईश्वर से है ...
जब तक सचेत चिंतन मयी सात्विक
सार्वभौमिक परमात्मा का सजीव दर्शन
करने वाला एक भी जीव वह है ...
रहेगा | पर विचार परमात्मा का नहीं
सनातन का नहीं अपना करना है ...
अपने भीतर झाँकना जरुरी हो गया है |
डर मिटाना पडेगा ... अपनी आत्मा से
दो बात करनी होगी कि वह है या पहली
चींटीं मारी वहीं छुट गई ... जब संसार
में आये थे तो एक सुकुन लाये थे ...
अब नहीं ... ... अब एक दौड बाकी
है सबसे ऊपर जाने की ... जहाँ हम
अहंकार में भर ... नीचे वालों को देख
मुस्कुरा सकें ... सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
- सत्यजीत 09829616230

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय