भगवत्कृपा
भक्ति के लिये एक शब्द है ...
केवल * भगवत्कृपा*
ही मूल है .वहीं औषधी है .
वहीं मार्ग वहीं मंज़िल ...
वो चाहे तो हूर को नूर कर
दें | ...
उनको वहीं चाहते है ...
जिसे वो चाहे , वहीं दर्शन वहीं
प्रेम - मार्ग पर चल पाते है
...
वरन् भक्त के जीवन के कष्ट
सामान्य जीवन के लिये
दुष्कर ही है … सामान्य
जन उन्हें नहीं सह सकते
पर भक्त का ध्यान कष्ट पर
ना हो उनके चरणारविन्द पर
होता है सो ख़्याल ही नहीं
आता कि दु: ख भी है क्या ?
और यें सब होता उनकी
कृपा से है ...
सभी उनसे मिलना चाहते है
पर वो किससे मिलेंगें यें वही
तय करते है | ...
हाँ मार्ग प्रेम का होता है
शुरुआत सत्संग से पर
होता सब उनकी ही कृपा से
है ...
राम कृपा बिन सुलभ न सोई !! सत्यजीत
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